पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१४

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LEJ 5 , की। इस एत्सव में राणा ने पुरोहित/ गरीबदास को १२ गाँव और अन्य ब्राह्मणों को गाँव, भूमि, सोना, चाँदी तथा सिरपाव दिये। पण्डितों, चारणों, भाटों आदि को ५५२ घोड़े, १३ हाथी तथा सिरोपाव दिये। मुख्य शिल्पी को २५ हजार रुपया दिये। अन्य चारणों को भी घोड़े दिये। इस उत्सव के उपलक्ष में जोधपुर के राजा जसवन्तसिंह राठौर, आमेर के राजा रामसिंह कछवाहा, बूंदी के राव भावसिंह हाड़ा, बीकानेर के राजा अनूप- सिंह, रामपुरा के चन्द्रावत महकमसिंह, जैसलमेर के रावल अमरसिंह, डूगरपुर के रावल जसवन्तसिंह रोवों के राजा भाव- सिंह को एक एक हाथी, दो दो घोड़े और जरदोजी सिरोपाव भेजे थे। उत्सव के दर्शनार्थ बाहर से ४६ हजार ब्राह्मण और मंगते आए थे जो भोजन वस्त्र से सन्तुष्ट किये गये । तालाब के बनवाने में १०५०७६०८ रुपये खर्च हुये थे। इसकी नौचौकी नामक बॉध पर नाकों में २५ बड़ी-बड़ी शिलाओं पर २५ सर्गों का राजप्रशस्ति महाकाव्य खुदा है जो भारत भर में सब से बड़ा शिलालेख है। इसकी रचना तैलंग गुसाई मधुसूदन के पुत्र रणछोड़ भट्ट ने की थी। इस तालाब के अलावा महाराणा ने सर्व ऋतुविलास नापक एक महल अपने कुवरपदे में बनाया था जिसमें बावड़ी और बाग भी है । देवारी के घाटे का कोट और दर्वाजा तैयार कराया। उदयपुर में अम्बा माता का मन्दिर बनवाया। रंग सागर तालाब बनवाया जो पीछे पीछोले में मिला लिया गया। कांकरोली का द्वारकाधीश का मन्दिर और राजनगर कस्वा बसाया। एकलिंग के पास वाले इन्द्रसर के पुराने बाँध की जगह नया बाँध बाँधा। राणा महादानी था । अपने जन्म दिन और दूसरे अवसरों पर यह तुलादान और बड़े-बड़े दान किया करता था। यह महावीर