पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१४३

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? १२८ राजसिंह [नवाँ तो यह अस्फुटित कुसुम कली के समान कुमारी ! अछूते पुष्प के समान कोमल और मृदुल कुमारी क्या कठोर क्षत्रियव्रत का पालन कर सकेगी ? हाय | क्यों मैंने उसके कौमार्य व्रत को भंग किया ! वाग्दान ही था न परन्तु अब । सेना में जयजयकार का घोष होता हैं ) लो, महाराणा की सेना कूच कर गई। एक पहर चढ़ गया और मैं विमूढ़ बना स्त्रीचिन्तन कर रहा हूँ, परन्तु गुलाब अभी नहीं आया । (चौंककर ) कौन गुलाब राव केसरीसिंह-नहीं, मैं हूँ सेनापति । अब हमें कूच करना चाहिये, सेना अधीर हो रही है। रत्नसिंह-अभी कूच होगा रावजी ! (चारों तरफ देखकर) गुलाब नहीं आया। (चौंककर) वह आ रहा है परन्तु उसके हाथ में क्या है । (निकट पाने पर ) स्त्री का सिर ? हा परमेश्वर ! यह क्या है ? (गुलाब गनी का सिर खिए आता है) गुलाब-लीजिए, महाराज प्रमाण ! रत्नसिंह-कैसा प्रमाण ! गुलाब-हाड़ी रानी का प्रमाण ! स्वामी, उन्होंने इसे देते हुए कहा-कि वीर क्षत्रिय को युद्ध के अवसर पर स्त्री का चिन्तन न करना चाहिए । स्वामी यदि पत्नी का अविश्वास करे तो धरती किसके बल ठहरे ! महा राज, उन्होंने अपने हाथ से यह प्रमाण पेश किया है