पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ग्यारहवाँ दृश्य (स्थान-रूपनगर का राजमहल; राजकुमारी का महल । समय- अर्ध रात्रि । राजकुमारी चारुमती खिड़की में बैठी अकेली गा रही है । गोद में राजसिंह का चित्र है) (राग-पीलू) नहीं आये। जागत बीती रैन भोर भयो आलस के मारे, झपके पापी नैन। मैं भोरी बेसुध हो सोई, वे सपने में आये। अंक भरूँ पगलू-बलि जाऊँ, चरण बिछाऊँ नैन। बैरिन नींद गई मैं जागी, समझी सपने की सबमाया। सोवे सोखोवे,जागे सो पावे, जग जाहिर ये बैन। मैंने जाग गँवायो री साजन, फूटें बैरी नैन। नहीं आये। नहीं आये। (रोती है और दोनों हाथों से मुंह ढंक लेती है निर्मला भाती है)