पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१५८

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. दृश्य चौथा अंक सेवक (हाथ जोड़कर) सरकार ड्योढ़ियों पर हाजिर हैं। रामसिंह-तो उन्हें यहाँ ले आ। खड़ा-खड़ा क्या मुझे खाएगा ? सेवक-जो आज्ञा । (जाता है) रामसिंह-(चार से) राजकुमारी, तुम्हें जानना चाहिये कि तुम आज भारतेश्वरी बनने जा रही हो। तुम्हारे भाग्य पर बड़ी-बड़ी राजकुमारियों को डाह होगा। (कुछ बक कर ) हाँ, मैं तुम्हे चारुमती-(क्रोध से) चुप रहो भाई रामसिंह-(नर्मी से ) समझ गया। रूपनगर के राजा को डाँटने- डपटने का अब तुम्हें अधिकार हो गया है, तुम ठहरी सम्राझी, बड़े-बड़े महाराजाओं को डाँट सकती हो। (हंसकर) मगर देखना, बादशाह को मुट्ठी में रखना, (कामदार आता है) कामदार-सेवक को क्या हुक्म है ? रामसिंह-सेवक को क्या हुक्म है, तो अभी तुम हुक्म ही की बाट देख रहे हो। अजी, किले पर रोशनी का बन्दो- बस्त हुआ। कामदार हो गया हुजूर ! रामसिंह-और बादशाह सलामत की सलामी का । कामदार-सब ठीक-ठाक है। रामसिंह-मैंने कहा था न, ज्योंही शाही सवारी की गर्द नजर आए" कामदार- 'किले से दनादन सलामी की.तो शारा दी जाय। ve मुट्ठी में।