पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१६०

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चौथा अंक निर्मल-(प्रणाम करके ) नहीं महाराज, भाग्य से ही आप इधर आए हैं राजसिंह-किले पर रोशनी हो रही है । महल में मंगल गीत गाये जा रहे हैं। रामकुमारी का श्रृंगार हो रहा है। यह सब क्या है। निर्मल-(मुस्कुरा कर ) आज रूपनगर की राजकन्या का ब्याह है-महाराज, आगे आइये। राजसिंह-(आगे बढ़कर ) किसके साथ । निर्मल-जिसके तेज-और प्रताप से सोई हुई राजपूत शक्ति जीवित हो रही है। जिसकी तलवार की धमक से दिल्लीपति भयभीत रहता है। जो भारत के सब राज- राजेश्वरों का शरण स्थल है उसी मेवाड़पति महा- राणा राजसिंह के साथ । (आगे बढकर ) समय और अवसर देखकर ही सब कार्य होते हैं महाराज, आज ऐसा ही अवसर है। हाथ दीजिए। राजसिंह-क्या कुमारी की भी यही इच्छा है ? निर्मल-वह श्रीमानों पर प्रकट है। राजसिंह-मैं उसे कुमारी ही के मुख से सुना चाहता हूँ। निर्मल-महाराज, कुलवती ललनायें मुंह से ऐसे विषयों में कैसे कहें।