पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१६५

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[दूसरा १५० राजसिंह राजसिंह-अवसर देखकर ही सब कुछ होता है, अतः अभी तो हम तुरन्त ही जाते हैं। ( विक्रमसिंह से ) आपको हम रूपनगर का महाराज स्वीकार करते हैं। (अपनी जड़ाऊ तलवार उनकी कमर मे बॉधते हैं) (सब, जय महाराज की जय मेवाड़पति को जय चिल्लाते हैं, पर्दा गिरता है)