पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१७१

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राजसिंह [चौथा योद्धा-अन्नदाता की जय हो। रावत रत्नसिंह अमर हुए, उन्होंने शत्रु से ऐसा लोहा लिया कि जिसका नाम । महाराज हम उनके मृत शरीर को ले आए हैं। राणा-रत्नगर्भा वसुन्धरा का एक लाल अपने उठते हुए जीवन में ही समाप्त हो गया । धर्म और कर्तव्य की वेदी पर बलिदान होने का यह अद्भुत उदाहरण रहा । (आँखों में आँसू भरकर) परन्तु इस वीर को मैं कुछ भी पुरस्कार न दे सका। राठोर जोधासिंह-महाराज, वीर का पुरस्कार तो उसकी यश- श्विनी मृत्यु ही है । जो क्षत्रिय अपनेकर्तव्य का पालन करता हुआ जीवन उत्सर्ग करे उसकी होड़ कौन कर सकता है। महाराज, यह शरीर नश्वर है और जीवन नगण्य । कर्तव्य और बलिदान ही उसके मूल्य की वृद्धि करता है । रावत रत्नसिंह का जीवन अमूल्य रहा-हम लोग उस पर डाह करते हैं महाराज ! भाला सुलतानसिंह-किसी कवि ने कहा है- कृपण जतन धन रो करे, कायर जीव जतन्न । सूर जतन उन रो करे, जिनरो खायो अन्न । राणा-धन्य है वह शूर । (योदा से) कहो, उस वीरवर की वीर गाथा विस्तार से कहो।