पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१७६

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श्य] चौथा अंक कमलकुमारी सोच रही थी-अन्धकार सदैव ही विश्राम का सन्देश लाता है। साथ ही विभीषिकाएँ भी। सब लोग ही रात के अन्धकार में विश्राम कर रहे हैं । यही जानकर चोरों को चोरी की घात मिलती है। जयसिंह-इसमें तुम क्या सोच रही हो प्रिये ? कमलकुमारी यही तो स्वामी । क्या जीवन में कभी कोई विश्राम भी कर पाता है ? हाँ जीवन के अन्त की बात तो दूसरी है। जयसिंह-जीवन के अन्त को कैसे ? कमलकुमारी-कैसे कहूँ । रत्नसिंह और सौभाग्यसुन्दरी का ही उदाहरण लो। अब वे कहीं न कहीं चिर विश्राम कर रहे होंगे। वे कठिन कर्तव्य तो पूरा कर चुके । जयसिंह कह नहीं सकता, पर अभी तो चलो हम विश्राम करें कमलकुमारी-बिना ही कर्तव्य पूरा किये ? जीवन के सिर पर कर्तव्य का भार लादे बीच मार्ग में विश्राम कैसा? जयसिंह-तो तुम शायद यह कह रही हो कि जीवन एक भार- वाही मात्र है। बोमा ढोना ही हमारा जीवन है और बोझा ढोते-ढोसे मर जाने पर हम कर्तव्य पूर्ण कर पाते हैं-अर्थात् मृत्यु ही हमारे लिये संसार का सबसे बड़ा पुरस्कार है। कमलकुमारी-आपने कभी सोचा है स्वामी ! क्यों.लोग मरने