पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१७७

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१६२ राजसिंह [पाँचवाँ वालों पर डाह करते हैं। जीना क्या भाग्यशाली नहीं है? जयसिंह-कैसे कहूँ। मैं तो कहता हूँ, मैं जब तक जीवित हूँ तभी तक भाग्यशाली हूँ। कमलकुमारी-आप ही तो कहते हैं । परन्तु जयसिंह-परन्तु क्या ? मेरा कथन क्या इतना नगण्य है रानी ? कमलकुमारी नहीं स्वामी, यह शायद सम्भव ही नहीं कि पत्नी पति की किसी बात को नगण्य समझे । परन्तु मैं यह कह रही थी, आखिर जीवन है क्या ? खाना, पीना, सोना, हँसना, इन्द्रियों की तृप्ति करना और बाल्या- वस्था से बुढ़ापे तक अपने ही शरीर को सब प्रक्रियाओं का केन्द्र समझना ही जीवन है । यदि ऐसा है तो मुझे इसमें घोर सन्देह है कि जीवन ही सौभाग्य है । जयसिंह-तब तुम्हारी राय में जीवन क्या है ? कमलकुमारी-मेरी राय ? एक मूर्खा स्त्री की राय क्या ? हाँ लोग कहते हैं कि जीवन स्वप्न है, कुछ कहते हैं जीवन संग्राम है। कोई कहते हैं जीवन भोगवाद है। जयसिंह-पर तुम क्या कहती हो रानी ! कमलकुमारी-मैं कहूँ ? जीवन शायद एक साधन है ! जयसिंह-साधन ? काहे का साधन ? कमलकुमारी-संसार के प्रवाह को बनाये रखने का । सृष्टि की नैसर्गिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने का । सृष्टि के