पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

छटा दृश्य (स्थान-उदयपुर । राणा का सभाभवन । कुछ चुने हुए सर्दार बैठे मन्त्रणा कर रहे हैं।) राणा-सरदारो, हमें आग में कूदना होगा। हिन्दू-धम और हिन्दू जाति को इस पतन से उभारने में हमारा सर्वस्व जाय तो जाय । बादशाह के और अन्याय ही बहुत थे-परन्तु यह जजिया तो सबसे बढ़ गया, कोई रतमन्द आदमी इस अपमान जनक कर को देना सहन नहीं कर सकता। एक सार-अन्नदाता, हिन्दुओं की लाजतो अब आप ही रख सकते हैं। सुना है, बादशाह ने हजारों आदमियों को हाथियों से कुचलवा दिया। राणा-मैंने बादशाह को पत्र लिखा है आप लोग भी सुनकर उस पर अपनी सम्मति दीजिए। क्योंकि आप लोग हमारे राज्य के रक्षक और हमारे हाथ पैर हैं। (दीवान से) दीवान जी, वह पत्र सब सर्दारों को सुना दिया जाल । दीवान-जो आजा महाराज, यही वह पत्र है-(पत्र निकाल कर पढ़ता है.)-'यद्यपि आपका शुभचिन्तक मैं आप से दूर हूँ तो भी आपकी आधीनता और राजभक्ति के