पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१८४

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दृश्य] चौथा अंक दीवान-(पढ़ते हुऐ) 'मतलब यह है कि आपने जो कर हिन्दुओं पर लगाया है वह न्याय और सुनीति के विरुद्ध है क्योंकि इससे देश दरिद्र हो जायगा। इसके सिवा वह हिन्दुस्तान के कानून के खिलाफ नई बात है। यदि आपको अपने ही धर्म के आग्रह ने इस पर उतारू किया है तो सब से पहले रामसिंह से जो हिन्दुओं का मुखिया है, जजिया बसला करें। उसके बाद मुझ शुभचिन्तक से। चीटियों और मक्खियों को पीसना वीर और उदार चित्त आदमी के लिये अनुचित है । आश्चर्य है कि आपको यह सलाह देते हुए, आपके मन्त्रियों ने न्याय और प्रतिष्ठा का कुछ भी विचार नहीं किया। सब सर्दार-बहुत उत्तम ! बहुत उत्तम ! राणा-यह वह पत्र है जिसे मैं बादशाह को भेजना चाहता हूँ। अब आप लोग विचार कर बता कि हमें क्या करना चाहिए क्योंकि यह पत्र बादशाह की क्रोधाग्नि में घृत का कामदेगा। सब सर्दार-महाराज, वह तो एक दिन हमें झेलना ही है, बादशाह मेवाड़ को नष्ट करने के लिए तुला बैठा ही है-फिर कल न सही आज ही सही । हमारी तलवारों ने मोर्चा नहीं खाया है । पत्र भेजा जाय ।