पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१८८

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श्य] चौथा अंक उदयपुरी बेगम-और उसी साइत में, जिसमें हुजूर उससे शादी करने वाले थे। बादशाह-उसी साइत में। उदयपुरी बेगम-जहॉपनाह लाचार लौट आए। क्या इसी बूते पर हुजूर हिन्द पर हुकूमत करेंगे । भाइयों को कत्ल करके और बाप को कैद करके जो तख्त आपने गुनाहों की दलदल मे फँसकर हासिल किया है उसकी जड़ एक नाचीत गॅवारी हिन्दू लड़कीयों हिला डालेगी, मैंने यह नहीं सोचा था। 'बादशाह-आलमगीर बदला लेगा। तुम देख लेना वह सरकस बदवख्त उदयपुर का राणा आलमगीर के कदमों पर नाक रगड़ेगा । मैं मेवाड़ को जला कर खाक कर दूंगा- एक भी गाँव, एक भी घर, एक भी इन्सान जिन्दा न बचने पावेगा । मैं औरत, बच्चों और बूढ़ों पर भी रहम न करूंगा। तमाम राजपूताने की ईट से ईट बजा दूंगा। उदयपुरी बेगम-शायद आप यह कर सकेंगे। और वह 'मंग- 'रूर बाँदी? बादशाह-वह जरूर रंगमहल में श्राकर तुम्हारी चिलम भरेगी। (तेजी से जाता है)