पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१९१

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•राजसिंह [आठवाँ चारुमती-राजपूत बाला के इरादे में विघ्न करने वाला वीर पृथ्वी पर कौन है । मैंने आपसे कहा था न कि मुझे . और एक शक्तिशाली आसरा मिल गया है। इस बार मैं आपसे अधिक शक्तिशाली की शरण जाऊँगी। राणा-यह शक्तिशाली कौन है ? चारुमती-यह विष । अन्त में राजपूत की बेटियों की यही तो गति होती है। राणा-क्या अब विषपान करोगी कुमारी ? चारुमती-और उपाय क्या है ? आशा है विष शरणागत को आपकी भाँति पीछे निराश्रय न करेगा। राणा-मैं निराश्रय तो नहीं करता कुमारी? चारुमती-तब फिर रूपनगर में मेरा रक्षक कौन है ? राणा-तो फिर तुम यहीं रहो । चारुमती-मिहमान बनकर या दासी बनकर । राणा-(हंसकर') कुमारी, तुमसे जीतना कठिन है । मैं तुम्हारी वाचालता देखता था। अच्छा तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो-जो चाहती हो वहीं बनकर । चारुमती-(गणा के चरण छूकर) महाराज, आज ही से नहीं, जिस दिन मैंने आपकी तस्वीर देखी उसी दिन से आपकी चरण-दासी बन गई थी। आप सोचते होंगे, मेरे लिए बादशाह से रार ठनेगी। सो तो जो होना था म्ही चुका । महाराज का वेज प्रताप बहुल बड़ा है। उस से करा कर भरालो का वर्ष पूर्ण होगा।