पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१९४

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दृश्य चौथा अंक १७६ से शाहजादा मुअन्जम की माता बेगम नव्याब बाई ने उसे मना कर दिया और उसने इन्कार कर दिया। राणा-इसके बाद? दुर्गादास-हमने शाहजादा अकबर से बातें की हैं और उसे समझा दिया है कि औरंगजेब हिन्दु विरोधी आन्दो- लन खड़ा करके मुग़ल साम्राज्य की कब्र खोद रहा है। तुम अगर बादशाह बनकर न्याय से शासन करो तो हम तुम्हारे साथ हैं। इस पर उसने विचार करने का समय माँगा है। महाराज ! कुल्हाड़ी से काट कराने के लिए लकड़ी का बँट चाहिये। हम हिन्दुओं का नाश भी मुराल शक्ति ने हिन्दुओं ही की सहायता से किया है। इसमें हमें भी मुग़लों की शक्ति पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिये अकबर को अपना लेना चाहिये। राणा-करो दुर्गादास ! अगर आप इस काम में सफलता प्राप्त कर सकें तो मैं विरोध नहीं करूँगा। परन्तु मुझे तो एक ही बात का पछतावा है। दुर्गादास-वह क्या महाराज ! राणा-यही, कि हमने दारा का पक्ष न लेकर भारी भूल की। यदि महाराजा जसवन्तसिंह और मैं अजमेर की लड़ाई में दारा को सहायता देते तो भारत का भाग्य इस सनकी मुल्ला के हाथ में न जाता। पर अब जो