पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१९६

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दसवाँ दृश्य (स्थान-दिल्ली का दीवाने खास । बादशाह औरंगजेब और वजीर असदुल्ला एकान्त में बात कर रहे हैं । समय-रात्रि) बादशाह-तो उस नाचीज ने बादशाह आलमगीर को नसीहत करने की जुर्रत की है और तलवार भेजकर चुनौती भी दी है। वजीर-हुजूर खत में तो ऐसा ही लिखा है। बादशाह-और आप कहते हैं कि जो लड़का जसवन्तसिंह का बेटा कहकर हमारे सुपुर्द किया गया था, वह जाली था, जसवन्तसिंह का असल बेटा रानी के पास है। वजीर-जी हाँ हुजूर ऐसा ही है। बादशाह-मगर यह बात यकीन कैसे की जा सकती है। वजीर-पहिले मुझे भी यकीन न हुआ था। मगर जब सुना कि राना ने उसकी परवरिश के लिए भारी जागीर दी है तो यकीन करना पड़ा। बादशाह-और आप कहते हैं कि राना को बार-बार लिखने पर भी उसने उस लड़के को वापिस देने में टाल-टूल वजीर-जी हाँ हुजूर ! बादशाह- अकेला रूपनगर का मामला ही उस पर फौजकशी करने के लिये काफी था। इसके पेश्तर भी उसके