पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२०४

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दृश्य] पाँचवाँ अंक . १८६ हमारे साथ हैं। उनके अलावा पानवाड़ा-मेरपुर, जूड़ा और जवास के भोपिये सरदार पालों के मुखिया हमारे मददगार हैं । मेरी योजना है कि ५० हजार भील वीर मेवाड़ के समस्त पहाड़ी नाकों और घाटों में दस-दस हजार की टुकड़ी में छिपकर बैठे और ज्यों ही दुश्मन की रसद, बारदाना व खजाना जाते देखें, लूट कर हमारे पास पहुँचा दें । उदयपुर और सब बस्तियों की प्रजा नगर खाली करके पहाड़ों में चली जाय । हमारी कुल कौजों के तीन हिस्से होंगे। एक भाग कुँवर जयसिंह की अधीनता में पहाड़ की चोटी पर स्थित रहेगा। दूसरे भाग को लेकर कुँवर भीमसिंह पच्छिम मोरचे पर डटेंगे और अवसर पाते ही मालवा और गुजरात के शाही हलकों को लूट लावेंगे। सेना का तीसरा भाग हमारे अधीन रहेगा और हम देवरी की घाटी की चौकी देंगे। सब सर्दार-यह योजना बहुत उत्तम है। राणा-अब सब सर्दार अपनी अपनी सेनाएं सजा करके ,कल प्रातःकाल देवी माता के पहाड़ों में जमा हो जाय क्योंकि समय कम है। सब सर्दार-जो आज्ञा। ( सब जाते हैं) .