पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२१७

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बेढव है। , 'बन्दूक! २०२ राजसिंह [पाँचवाँ [ नायब-(घबरा कर ) म्याँ पीरबख्श, सम्हालिये जरा, ये बेअदब गधे सर पर ही चढ़े चले आ रहे हैं। लाओ हमारी बन्दूक, तमंचा, तलवार। पीरबख्श-हुजूर, वक्त पर हमें आजमाईए, पर यह मौका तो (भागता है) नायब-मियाँ कमरुद्दीन, दागो गोली धर के, उड़ा दो सब को, भून डालो म्यॉ ? बन्दूक लो कुमार भीमसिंह-पकड़ लो, गिरफ्तार कर लो, जो लड़े उसके दो टूक कर दो। नायब-किस को ? क्या हमको? हम नायब सिपहसालार इक्काताजखाँ जंग बहादुर हैं। कमरुद्दीन-(अकड़कर) समझे कि नहीं । ऐरे गैरे नत्थू खैरे नहीं। भीमसिंह-बाँध लो, मुश्के कस लो, छावनी लूट लो और बाद में आग लगा दो। नायब-ब खुदा, अजब जाँगलू हो, तमीज़ छू नहीं गई। कहते हैं दूर ही रहना । मियाँ कमरुहीन ? कमरुद्दीन-हुजूर, अब इन जंगलियों को कौन समझाए। अभी कहते हैं, दूर रहो, अदब से बातें करो। वरना नायब साहेब बिगड़ गये तो कयामत वर्षा हो जायगी। एक राजपूत सिपाही-(सिर पर धौल जमाकर) चलो ठण्डे -ठण्डे । राणाजी के सामने तुम्हारा सिर काटा जायगा। (भक्का देते हुए ले जाते हैं । ) , . .