पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२२५

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२१० राजसिंह [आठवाँ तहब्बुर खाँ-छिपाने की क्या जरूरत है शाहजादा! यहाँ सब एक ही थैली के चट्ट बट्ट हैं। कहिए आप चाहते है या नहीं? अकबर-चाहता तो हूँ-फिर ? तहब्बुर खॉ-फिर उसके लिए कोशिश कीजिए । बादशाहत तो अपने आप तो आपको मिल नहीं सकती । उसके लिये दौड़ धूप करनी होगी। अकबर-यह काम बहुत मुश्किल है तहब्बुरखाँ ! तहब्बुरस्नाँ-बहादुर लोग ही मुश्किल आसान किया करते हैं, मगर मुझे तो बहुत आसान दीख रहा है। अकबर-आसान दीख रहा है, कैसे ? तहब्बुरखाँ-अगर आप राजपूतों को अपनी मुट्ठी में कर लें। इनकी मदद से आप बादशाह हो सकते हैं। आलम- गीर ने इन राजपूतों को नाराज करके मुराल सल्तनत की जड़ें हिला दी हैं। मुग़ल तख्त का पाया राजपूतों के कन्धे पर था-शाहेजहाँ, अकबर और जहाँगीर ने यह बात समझी थी। मगर अफसोस, बादशाह आलमगीर न समझ सके। अब भी वक्त है, आप समझिए। आप राजपूतों से चुपचाप सुलह कर लीजिए। (देखकर) वह शाहजादा आजम पा रहे हैं। सहबुरखाँ-बन्दगी शाहजादा!