पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दृश्य ] पाँचवाँ अंक २११ आजम-(परवाह न करके अकबर से ) अब्बाजान ने कैफियत तलब की है। अकबर-कैसी कैफियत? आज़म-वे तुम पर खूब नाराज है । अकबर-क्यों ? किस लिये ? आजम-तुम लड़ाई में हार गये। अकबर-और तुम दिलावर खाँ, और खुद बादशाह सलामत ? आजम-हमने लड़कर शिकश्त खाई है। अकबर-पत्थरों से या पहाड़ों से, और तो कोई दुश्मन हमें नहीं दीखा। आजम-यह मैं नहीं जानता । अब्बाजान तुमसे बहुत नाराज हैं। अकबर-तो मैं क्या करू? आजम-जो ठीक समझो । बादशाह बहुत नाराज हैं। (जाता है) अकबर सुना तुमने तहब्बुर । आजम ने लड़कर शिकश्त खाई है। शर्म नहीं आती, बेगम तक कैद कर ली गई। मगर समझ गया, आजम ने मेरे खिलाफ अब्बा को भरा है। वहब्बुरखा-देखा नहीं, कैसी टेढ़ी नजर से देखते थे। अकबर-तुम राजपूतों की मदद की क्या कहते थे-कहो। वहब्बुरखाँ-आप उनकी मदद खरीदने को राजी हैं। प्रकपर खरीदने को