पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२३६

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ग्यारहवाँ दृश्य (स्थानराणा की छावनी । चुने हुए सरदार और राणाजी बाते कर रहे है। समय-दोपहर) राब केसरीसिंह-श्रीमान् ! पेट की आग से जलकर मुराल शहनशाह नरम हो गया है। उसने सुलह का पैगाम भेजा है। कुमार भीमसिंह-उसकी बात का क्या विश्वास ? नहीं, इस बार उसे सर्वथा नष्ट कर दिया जाय । वह यही भूख प्यास से तड़प-तड़प कर मरे । मर जाने पर हम डोमों के हाथों उसे गौर दिला देगे। राणा-(हंसकर ) इस समय यह तो बहुत आसान है कि उसे यहाँ सुखा-सुखा कर मार डाला जाय परन्तु औरंग- जेब के मरने से मुगल शक्ति का नाश नहीं हो जायगा। उसके बाद इसका बेटा बादशाह होगा, उसकी मातहती में दक्षिण की विजयिनी सेना इसी पहाड़ के उस पार पड़ी हुई है। और भी उसकी दो विशाल सेनाए' मेवाड़ के अंचल पर अभी मुक्कीम हैं । इन सबको क्या हम नष्ट कर सकते हैं ? उनसे हमें आज नहीं तो फिर कभी सुलह करनी होगी। अब सुलह करनी है तो उसके