पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२३९

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बारहवां दृश्य (स्थान -राम का जनाना महल । महारानी चारुमती एक गद्दी पर बैठी है। समय-पातकाल । निर्मख पाती है।) निर्मल-बादशाह से राणाजी की सन्धि हो गई है। (आपकी अज्ञानुसार उदयपुरी बेगम और शाहजादी जेबुन्निसा हाज़िर है। श्राज्ञा पाऊँ तो सेवा में खाऊँ) चारुमती-पहिले उदयपुरी बेगम को ला। निर्मल बहुत अच्छा । ( जाती है) चारुमती -यही है वह बादशाह क, चहेती, जिसके आग्रह से बादशाह मुझसे शादी किया चाहता था। मुझे बेगम बनवाने के लिए नहीं बल्कि इन बेगम की चिलम भरवाने के लिए। देवू कैसी है वह । ( मलिका और निर्मल पाती है) चारुमती-(ससम्मान सदी होकर ) आइए इस चौकी पर बैठिए । -उदयपुरी बेगम-(घमण्ड से ) तुम लोगों को मौत का डर नहीं है जो बादशाह की बेगम को गिरफ्तार किया है। चारुमती -(मुस्कराकर )जी नहीं, राजपूत मौत से डरते नहीं, खेलते हैं। उदयपुरी बेगम -मगर खबरदार रहो तुम काकिर लोग अपनी एनी जल्द पहुँचोगे।