पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२४

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3 दृश्य] पहिला अंक रावत मेघसिंह -जो आज्ञा दरबार । राणा-देवलिये का मामला कैसे तै होगा? दीवान फतहचन्द-यह सेवक देवलिये पर गया था । रावत हरी- सिंह भागकर बादशाह के पास चले गये हैं। पर उनकी माता ने अपने पोते प्रतापसिंह को सेवा में भेज दिया है, साथ में ५ हजार रु० और एक हथिनी दण्ड में दी है। आगरे में सहायता का कोई रंग ढंग न देखकर रावत हरीसिंह गवत रघुनाथसिंह की मारफत शरण में आने की विनती करते हैं। राणा-(गम्भीरता से) इस मामले पर पीछे मसलहत होगी। अभी हमें बहुत कुछ करना बाकी है। जिन-जिन ठिकानेदारों ने वजीर सादुल्ला के साथ मिलकर चित्तौड़ की मरम्मत ढहाने में सहयोग दिया था उन सवको दौंड मिल गया। पर चितौड़ की मरम्मत का गिराया जाना मेरी आँखों में शूल सा चुभ रहा है। (बेचैनी से धूमता है फिर ठहर कर) परन्तु यही समय है। दीवान फतह चन्द-श्री महाराज की क्या इच्छा है ? राणा-दिल्ली का मुग़ल तख्त डगमगा रहा है। आओ सुयोग पाकर राजपूताने की नींव दृढ़ करलें। आप लोगों की सहायता से हमने गत १०० वर्षों से खोए हुए इलाके अपने राज्य-काल के प्रारम्भ ही में हस्तगत कर लिये हैं। अब हमें अजेय चितौड़ की मरम्मत करनी है