पृष्ठ:राजसिंह.djvu/३९

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२४ राजसिंह [छठा रानी-महाराज की ये छोटी-छोटी भूलें । जिस वीर ने श्री एक- लिङ्ग में रत्न तुला करके भारत के नरपतियों में शीर्ष- स्थान ग्रहण किया, जिस वीर ने अपनी भुजाओं के बल पर पूर्वजों के खोये राज्य को अपने प्रभुत्व के प्रारम्भ ही में प्राप्त किया। जिस वीर की यशोगाथा राजपूतों में घर-घर गाई जा रही है। जो हिन्दु-सूर्य, हिन्दु-धर्म-रक्षक है उसे अपने ही सरदार के प्रति ऐसा ओछा आचरण न करना चाहिये। राजा एक बड़ा वृक्ष है और सरदार गण उसकी शाखायें हैं। उन्हीं से उसकी शोभा और पुष्टि है। महाराज, क्या आप रुष्ट हो रहे हैं। राणा-नहीं, महाराणी में विचार कर रहा हूँ...... ( एक दासी भाती है) दासी-घड़ी खम्मा अन्नदाता, रावल रत्नसिंहजी ज्योदियों पर हाजिर हैं। रानी-उन्हें यहीं ले पा । (राणाओ से) रत्नसिंह को मैं जयसिंह . से किसी भाँति कम नहीं समझती। वह बड़ा विजयी, वीर और सुशील है। ( रत्नसिंह भाता है) रत्नसिंह-अन्नदाता की जय हो । सेवक को क्या आशा