पृष्ठ:राजसिंह.djvu/५०

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३५ दृश्य] पहिला अंक एक-सुनोरी सखी, आओ आज हम राजकुमारी को खूब छकावें। दूसरी-क्या करेगी रीतू ? पहिली-मैं कहूँगो कि राजकुमारी को न्याह की फिक्र हो रही है। तीसरी-खूब मजा रहेगा। फिर हम पूछेगी-उन्हे कौनसा दूल्हा पसन्द है। पहली-उनका दूल्हा मेरे मन में है, पर बताऊँगी नहीं। दूसरी-बता दे सखी। पहिली-नहीं बताऊँगी। हम सब जनी मिलकर उन्हीं से पूछेगी। 'उन्हें खूब तंग करेंगी। दूसरी-खूब दिल्लगी रहेगी । सुन-(कान में कुछ कहकर ) क्यों ? है न यही बात। पहिली-दूर हो पगली, ऐसा भी कहीं हो सकता है ! चुप, वह दासी आ रही है। (दासी पाती है दासी-एक बुढ़िया राजकुमारी से मिलने की बड़ी देर से हठठान रही है। मैंने बहुत कहा, आज कुमारीजी व्रत कर रही हैं। मुलाकात नहीं होगी। पर सुनती ही नहीं । (हँसकर) उसने मुझे घूस में यह सुमें की शीशी दी है एक सहेली-क्या करामात है इस सुमे में ? देखू- दूसरी-इसे आँख में लगाने से एक के दो दीखते हैं। तीसरी-तब तो बहुत अच्छा है, एक शीशी मैं भी लूंगी।