पृष्ठ:राजसिंह.djvu/६४

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दूसरा अंक दृश्य] ४६ दुर्गादास महाराणा की जय ! अब हमें आज्ञा हो तो देश प्रेम और देशभक्ति के जोग साधने को हम घर-घर अलख जगावें और ऐसा सरंजाम करें जिससे मुराल तख्त एक दिन जल कर राख हो जाय । राणा-जाओ वीरवर ! समय पर यह अवश्य होगा। (परदा गिरता है)