पृष्ठ:राजसिंह.djvu/६८

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दूसरा अंक

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दृश्य शाहज्जादी-(चौंककर) लात ? फितरत-और यही उसकी सहेलियों ने किया। शाहजादी (होठ चबाकर) फिर ! फितरत-हुजूर, मैं अपनी जान लेकर भागी। शाहजादी-(सोचकर) खूबसूरत है वह ? फितरत-क्या कहूँ हुजूर, तस्वीर की मानिन्द । शाहजादी-सिन क्या है ? फितरत-सरकार, अभी अधखिली कली है। शाहजादी हमसे भी ज्यादा खूबसूरत है क्या ? फितरत (दोनों कानों पर हाथ रखकर) तोबा-तोबा ! कहाँ हुजूर शाहजादी-कहाँ वह बाँदी। शाहजादी (हंसकर) हज़रत उदयपुरी बेगम की बनिस्बत ? फितरत-(हंसकर) हुजूर । वह चाँद का टुकड़ा है । शाहजादी बख्शीश मिलेगी (पुकार कर) कोई है ? एक तातारी बांदी नगी तलधार लिए श्राती है) बाँदी-हुक्म। शाहजादी-रंगमहल के खजानची पर इस औरत को इनाम का परवाना जारी करने को मीर मुन्शी से कह दे। (बुढिया से) दूर हो शैतान। (बुढ़िया और बाँदी जाती है। शाहजादी-(स्वगत)काम की खबर है। अब उस जर्जियाना बाँदी का गुरूर मुझे नहीं बर्दाश्त होता । इस रंग महल का