पृष्ठ:राजसिंह.djvu/६९

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५४ राजसिंह [तीसरा वही एक खटका है। वह काफिर अब्बा को अपने चुङ्गल में बुरी तरह फॉसे है। वह भूल गई है जब बर्दाफरोशों के हाथ से उसे बदनसीब दारा ने खरीदा था। आज वह मलिका है। और मुझे भी उसे सलाम करना पड़ता है। कम्बख्त कृस्तान हर दम शराब में बुत बनी रहती है। उसे खोद निकालने का यह अच्छा खासा जरिया होगा। यह राजपूत मरारूर लड़की अगर बादशाह की बेगम बन सके । (कुछ सोचकर) ठीक है। वह आग जलाऊँ कि जिसका पार नहीं। (सोचती है। पर्दा गिरता है।)