पृष्ठ:राजसिंह.djvu/७१

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राजसिंह [चौथा ब्राह्मण-(गद्गद् कण्ठ से) देवता की रक्षा के लिये। जो देवता जगत की रक्षा करते हैं। जिनकी कृपा से मेघ जल बरसता है रात्रि चाँदनी बखेरती है । सूर्य तपता है। दिन सौन्दर्य बखेरता है, आज भारत में उनकी रक्षा नहीं हो सकती । श्रार्यों की भूमि भारत से धर्म उठ गया। भील-नहीं, कौन देवता का अपमान करता है। हम उसे मार डालेगे। ब्राह्मण-भौले भाइयों तुम्हारी शक्ति से बाहर की बात है। जिसके भय से राजपूताना थर-थर कॉपता है। राजा और महाराजा जिसकी सेवा में खड़े रहते हैं, उसी के भय से-मैं देवता के लिये इस द्वार से उस द्वार और उस द्वार से इस द्वार मारा-मारा फिर रहा हूँ--उसी के भय से कोई मुझे आश्रय नहीं देता। तुम भी उससे मेरे देवता की रक्षा नहीं कर सकते ? (आँखों से आँसू पोंछता है) भील-कौन है वह ऐसा बली ? ब्राह्मण-आलमगीर बादशाह । जिमने बाप को कैद करके और भाइयों को कत्ल करके दिल्ली के तख्त को कलंकित किया है । जो मुग़ल वंश का राहू होकर जन्मा है। उसने हिंदुस्तान के तमाम मन्दिरों को ढहवाना शुरू कर दिया है। देश के बड़े-बड़े प्रसिद्ध धर्मस्थान ढहकर