पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१०३

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जयपुर का इतिहास जयपुर राज्य की स्थापना व मुगल सम्बन्ध 1 अंग्रेज लेखकों ने राजस्थान का इतिहास लिखने में राज्य का नाम न देकर उसकी राजधानी का नाम शीर्पक में देकर लिखा है, जैसे मारवाड़ के स्थान पर जोधपुर और मेवाड़ के स्थान पर उदयपुर का नाम दिया है। जिस राज्य को हाडौती के नाम से लिखना चाहिए था, उसे उन्होंने कोटा और बूंदी का नाम दिया है। इसी प्रकार दूसरे राज्यों के सम्बन्ध में भी किया गया है। इसलिए पाठकों के सामने किसी प्रकार का भ्रम न उत्पन्न होना चाहिए। कछवाहा राजपूत जिस राज्य में रहते हैं, वह सर्वसाधारण में जयपुर के नाम से प्रसिद्ध है। चौहान और राठौर राजपूतों ने जिस प्रकार मरुभूमि की पुरानी जातियों को पराजित करके अपने राज्य कायम किये थे, ठीक उसी तरह जयपुर राज्य की भी स्थापना हुई थी। इस राज्य की प्रतिष्ठा करने वालों ने वहाँ के छोटे-छोटे राजाओ के शासन को मिटाया और उन सबके स्थान पर अपने राज्य की सृष्टि की। आज का विस्तृत जयपुर राज्य पहले ढूंढाड के नाम से प्रसिद्ध था। प्राचीन ग्रन्थों से मालूम होता है कि ढूँढाड वहाँ के एक प्राचीन स्थान का नाम था। उन ग्रन्थों से पता चलता है कि प्राचीन काल में बनेर नामक स्थान के पास ढूँढ नाम का एक प्रसिद्ध शिखर था। उसी से ढूंढाड नाम की उत्पत्ति हुई है। ढूंढ शिखर के सम्बन्ध में कहा जाता है कि चौहान वंश के प्रसिद्ध राजा अजमेर के नरेश वीसलदेव ने इसी शिखर पर तपस्या की थी। उसने अपनी प्रजा के साथ भयानक अत्याचार किये थे। इसीलिए वह राक्षस होकर पैदा हुआ। इस जन्म में भी वह पहले के समान प्रजा का संहार करता रहा। वह अपने राज्य की प्रजा को खा जाया करता था। उसकी इस दशा में राज्य के लोगों ने उसके पौत्र को उसके सामने पहुंचा दिया। उसे देखकर वह सचेत हो उठा। अपने पौत्र का वह संहार न कर सका और जमुना नदी के किनारे पर जाकर उसने आत्महत्या कर ली। यह जनश्रुति अव तक लोगों में चली आ रही है। ऐसा मालूम होता है कि राजा वीसलदेव अत्याचारी था और इसीलिए लोग उसे राक्षस कहा करते थे। वह प्रजा के साथ जिस प्रकार अत्याचार करता था, उसको प्रजा का संहार करना स्वाभाविक रूप से कहा जा सकता है। अपने वंशज पर इस प्रकार का अवसर आने के समय उसको जान उत्पन्न हुआ और वह अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए ढूंढ के शिखर पर जाकर तपस्या करने लगा। उस जनश्रुति का अभिप्राय कुछ इस प्रकार जान पड़ता है। 95