पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१४५

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जयपुर राज्य में आकर ऊपर लिखे हुये प्रश्नों के आधार पर परिस्थितियों को समझने की चेष्टा की। नाजिर ने अपने सफल प्रयत्नों के द्वारा कम्पनी के उस कर्मचारी को भी अनुकूल वना लिया। उसने जयपुर से लौटकर अपने अधिकारियों को ऐसी रिपोर्ट दी, जिससे सन्तुष्ट होकर बालक मोहनसिंह के पक्ष में कम्पनी की स्वीकृति नाजिर के पास आ गयी। कम्पनी का वह पत्र दरवार में सबके सामने उपस्थित किया गया और नाजिर ने प्रसन्नता के साथ उसे पढ़कर सबको सुनाया। इस स्वीकृति के मिलने के बाद मोहनसिंह को राज-सिंहासन मिलने के सम्बन्ध में नरवर मे खुशियाँ मनायी गई। ___ नाजिर को अब भी थोड़ा बहुत सामन्तों पर सन्देह था। उसको दूर करने के लिए उसने सामन्तों से प्रश्न किया- "आप लोगों की क्या सम्मति है?" सामन्त लोग नाजिर की चालाकी को खूब जानते थे। इन दिनों में उसी के इशारों पर राज्य का शासन चल रहा था। नाजिर जिसे चाहता था अधिकारी बना देता था और जिसे चाहता था, उसे मिटाने की कोशिश करता था। इन परिस्थितियो में जान बूझकर सामन्त लोग उसके शत्रु नहीं बनना चाहते थे। इसीलिए उन लोगों ने बुद्धिमानी के साथ एक निर्णय करके नाजिर के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा- "जोधपुर के राजा की बहन आजकल इस राज्य की पटरानी है। उसकी मर्यादा को सम्मान देना हम सबका कर्त्तव्य है। इसलिए इस प्रश्न के सम्बन्ध में हम लोगों का उत्तर पटरानी के उत्तर पर निर्भर है।" सामन्तों के इस उत्तर को सुनकर नाजिर चौंक पड़ा। उसे उन सामन्तों से इस प्रकार के उत्तर की आशा न थी। पटरानी नाजिर से प्रसन्न न थी। उसने न केवल नाजिर का विरोध किया, बल्कि इस मामले में जो लोग उसके पक्षपाती थे और जिस किसी ने बालक मोहनसिंह को सिंहासन पर बिठाने के लिए अपनी सम्मति दी थी, पटरानी ने साहसपूर्वक उनका विरोध किया। एक फरवरी को ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तरफ से मोहनसिंह का समर्थन नाजिर को प्राप्त हो गया था। लेकिन पटरानी के विरोध से दरवार की परिस्थिति पलटने लगी। सामन्तों ने वड़ी बुद्धिमानी के साथ पटरानी का आश्रय और आधार लेकर ऐसा उत्तर दिया, जिससे बहुत साफ-साफ बालक मोहनसिंह को सिंहासन देने का विरोध प्रकट होता था। इन सब बातों का परिणाम यह निकला कि फरवरी के अन्त तक नाजिर की विरोधी शक्तियाँ बढ़ने लगी और मोहनसिंह का जो अभिषेक किया गया था, उसके प्रति राज्य की प्रजा में असन्तोप पेदा हो गया। झिलाय का राजावत सामन्त इस सिंहासन को पाने का अधिकारी था। वह अपने स्वत्व की रक्षा के लिए युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। सिवाडा और ईसरदा के दोनों सामन्तों ने उसका साथ देने की प्रतिज्ञा की। पृथ्वीसिंह का पुत्र इन दिनो में ग्वालियर में रहता था, उसको आमेर के सिंहासन पर बिठाने के लिए कुछ लोगों की राय होने लगी। इस प्रकार राज्य में नाजिर का विरोध आरम्भ हुआ। अभी तक वह समझता था कि अंग्रेज कम्पनी की स्वीकृति मिल जाने के बाद विरोध करने का किसी में साहस नहीं हो सकता। लेकिन उसके बाद जो विरोध और विद्रोह पैदा हुआ, उसको असफल बनाने के लिए उसने सभी प्रकार के उपाय सोच डाले। इन दिनों में जयपुर राज्य में कोई शक्तिशाली सामन्त न था। नहीं तो नाजिर जैसे व्यक्ति ने राज्य में अपना आधिपत्य कायम न किया होता। उसकी चालाकी की सीमा न थी।