पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

इस निर्णय के अनुसार, शेखावाटी के सामन्तों में आपसी निर्णय की तैयारियाँ होने लगीं। उस समय से पहले ऐसे अवसरो पर सभी शेखावत सामन्त उदयपुर नामक स्थान पर एकत्रित हुआ करते थे और आपसी संघर्पो का निर्णय किया करते थे। उसी उदयपुर में इस समय भी सम्पूर्ण शेखावाटी के अधिकारी और सामन्त एकत्रित हुए। उस समय एक प्रस्ताव सब के सामने इस आशय का उपस्थित किया गया कि हम सब लोग कुछ भी निर्णय करने के पहले, प्राचीन प्रणाली के अनुसार नमक पर हाथ रख कर इस बात की शपथ लें कि इस सम्मेलन में जो कुछ निर्णय होगा, उसका पालन प्रत्येक अवस्था मे हम लोग करेंगे। बिना किसी विरोध के उपस्थित लोगों ने उसको स्वीकार किया। जयपुर में इस समय शेखावाटी के सभी अधिकारी और सामन्त आये थे। उन लोगों ने निश्चय किया कि हम सब को व्यर्थ के आपसी झगड़े खत्म कर देने चाहिए। यदि कभी कोई ऐसा संघर्प पैदा हो, जो विचारणीय हो, उसके लिए हम सब लोग इसी स्थान पर एकत्रित हों और बिना किसी पक्षपात के हम सब लोग मिल कर उस संवर्प का निर्णय करें। हमारे पूर्वज भी ऐसा ही करते थे और ऐसे मौकों पर वे इसी स्थान पर एकत्रित होते थे। शेखावाटी के उन एकत्रित अधिकारियो ने यह भी निश्चय किया कि हम लोग अपने किसी संघर्ष को मिटाने के लिये भविष्य में कभी भी आमेर के राजा को मध्यस्थ नहीं बनायेंगे। उसके लिए हम लोगो के बीच का कोई भी व्यक्ति चुन लिया जाएगा। हम लोगों के किसी भी विवाद के निर्णय करने का अधिकार आज के बाद किसी दूसरे को न होगा। हम सब लोग स्वयं अपना निर्णय करेंगे और उसके लिये किसी निर्णायक अथवा मध्यस्थ का निर्वाचन स्वयं ही कर लेंगे। उन एकत्रित लोगो में यह भी निश्चय हुआ कि यदि आमेर का राजा हम लोगों के मामले में जबरदस्ती हस्तक्षेप करेगा तो हम सभी लोग अपनी सेनाओं के साथ एकत्रित होकर आमेर के राजा का सामना करेंगे। __शेखावाटी के समस्त अधिकारियों और सामन्तों के उदयपुर में एकत्रित होने और इस प्रकार निर्णय करने का समाचार जयपुर पहुँच गया। उसे सुनकर वहाँ का राजा बहुत भयभीत हुआ। शेखावत सामन्तों के साथ राज्य की तरफ से अब तक जो कुछ हुआ था, उस पर आमेर के राजा ने गम्भीर होकर विचार किया और इस बात को अनुभव किया कि नन्दराम हलदिया के दूपित व्यवहारों और अत्याचारों के कारण शेखावाटी के सामन्तों को इस प्रकार एकत्रित होकर हमारे विरुद्ध निर्णय करना पड़ा है। इस बात का भली भाँति अनुभव करके आमेर के राजा ने नन्दराम को उसके पद से हटाकर रोडाराम नामक एक व्यक्ति को नियुक्त किया और उसे सेना के साथ शेखावाटी रवाना किया। राजा की आज्ञानुसार नन्दराम को कैद करके जयपुर भेजने के लिए रोडाराम को आदेश मिला। नन्दराम हलदिया को आमेर के राजा का यह आदेश रोडाराम के आने के पहले ही मालूम हो गया। उसने समझ लिया कि अब मे कैद कर लिया जाऊंगा। इसलिए वह इस समाचार को पाते ही भाग गया। जयपुर के राजा से यह बात छिपी न रही कि सेनापति नन्दराम के इन समस्त अत्याचारो का कारण और अपराधी बहुत कुछ राज्य का प्रधानमंत्री दौलत राम 166