पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१८१

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हम दोनों के छूटने की कोई आशा नहीं है। समाचार को पाकर शेखावाटी के सभी सामन्त अत्यधिक क्रोधित हुए और इस प्रकार के अत्याचारों का बदला लेने के लिए वे लोग उत्तेजित हो उठे। सभी ने अपनी सेनाओं के साथ खण्डेला में उस ब्राह्मण पर आक्रमण किया। दोनों तरफ से युद्ध आरम्भ हो गया। उस ब्राह्मण के पास सात हजार सैनिकों की सेना थी। वह लड़कर पराजित हुई। सामन्तों ने उस ब्राह्मण को परास्त कर उसका खण्डेला नगर लूट लिया। ब्राह्मण वहाँ से अपने बचे हुये सैनिकों के साथ भाग गया। उस ब्राह्मण को पराजित करने के बाद वहाँ के सामन्तों का उत्साह बढ़ गया। उत्तेजित अवस्था में वे सब अपनी सेनाओं के साथ जयपुर राज्य की तरफ बढ़े और वहाँ के ग्रामों तथा नगरों को लूटना आरम्भ किया। इस प्रकार लूटमार करते हुए वे लोग उस नगर में पहुँचे, जो जयपुर राज्य की बड़ी रानी के अधिकार में था। सामन्तों की सेनायें उस नगर का विनाश और विध्वंस करने लगी। इस समाचार को सुनकर और क्रोधित होकर जयपुर के राजा ने उनको दमन करने के लिये एक नयी सेना राजधानी से भेजी। उस सेना के पहुंचते ही दोनों ओर से भीषण संग्राम आरम्भ हुआ। इस युद्ध में सामन्त निर्बल पड़ने लगे। उस दशा में रानोली और कई एक दूसरी जागीरों के सामन्तों ने जयपुर के राजा के साथ सन्धि कर ली और उसकी अधीनता को स्वीकार किया। परन्तु रायसल की छोटी शाखा के सामन्तों ने जयपुर की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया। वे लोग इसके लिये किसी प्रकार तैयार न हुये और अपनी जागीरों को छोड़कर बीकानेर एवं मारवाड़ में जाकर रहने लगे। प्रतापसिंह के सजातीय बन्धु सूजावास के सामन्त संग्राम सिंह ने मारवाड़ में और वाघसिंह तथा सूर्यसिंह ने बीकानेर में जाकर आश्रय लिया। वहाँ के राजाओं ने सम्मानपूर्वक उनको स्थान दिया और उनके गुजारे के लिये उनको जागीरें दी गयीं। बहुत दिनों तक वहाँ पर रह कर उन लोगों ने अपनी शक्तियों का संगठन किया और संगठित होकर उन्होंने जयपुर राज्य के विध्वंस और विनाश का निश्चय किया। निर्वासित सामन्त अपनी सेनायें लेकर संग्राम सिंह के नेतृत्व में जयपुर की तरफ रवाना हुये और आमेर के पास पहुँचकर वहाँ के ग्रामों और नगरों को लूटने लगे। उन्होंने जयपुर राज्य के दुर्गो पर आक्रमण किया और निर्दयता के साथ वहाँ के सैनिकों का संहार किया। इस प्रकार विध्वंस और विनाश करते हुए वे लोग आमेर के निकट खोह नगर में पहुँच गये। वहाँ पर भी उन लोगों ने लूटमार की और वहाँ के समस्त अच्छे घोड़ों को अपनी सेना में ले गये। संग्रामसिंह ने इन दिनों में अपनी शक्तियाँ सुदृढ बना ली थी और उसे अव जयपुर राज्य का कोई भय न रह गया था। उसके अत्याचारो से जयपुर राज्य की प्रजा भयानक कष्टो में पड गयी। इस प्रकार के समाचार जयपुर के राजा के पास पहुंचे। राज्य की तरफ से लोगों ने वहाँ के राजा से इस लूटमार का जिक्र किया। उसे सुनकर संग्राम सिंह से राजा को भय पैदा हुआ और उसने विसाऊ के सिद्धानी सामन्त श्यामसिंह को अपना प्रतिनिधि बनाकर संग्राम सिंह के पास सन्धि के लिये भेजा। संग्राम सिंह श्यामसिंह की बातो को सुनकर प्रभावित हुआ 173