पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१८५

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एक सेनापति के अधिकार में दो पैदल सेनायें भेजी और एक गोलन्दाज भी उनके साथ रवाना हुआ। उन सबके साथ खुशहाली राम को रवाना करके जयपुर के राजा ने उससे कहा- "यदि तुम अब भी हनुमन्तसिंह को परास्त न कर सकोगे तो तुमको इसके लिये दण्ड दिया जायेगा।" जयपुर की सेना को लेकर खुशहाली राम खण्डेला की तरफ चला। वहाँ पहँचकर जयपुर की सेना ने हनुमन्तसिंह के सैनिकों पर आक्रमण किया। कुछ समय तक युद्ध होने के वाद खुशहाली राम अपनी सेना के साथ पराजित हुआ। वह जयपुर की सेना को लेकर युद्धस्थल से हट गया। इस लड़ाई में हनुमन्तसिंह भयानक रूप से घायल हो गया था। जयपुर की सेना के हट जाने से वह अपनी सेना के साथ दुर्ग में चला गया। इसके वाद खुशहाली राम ने उस दुर्ग को घेर लिया। फिर से युद्ध आरम्भ हो गया। हनुमन्तसिंह ने घायल होने पर भी शत्रुसेना के तीस आदमियों का संहार किया। इस समय पर दुर्ग को जीत सकना खुशहाली राम के लिये सम्भव न था। परन्तु दुर्ग के भीतर पानी का अभाव हो जाने के कारण हनुमन्तसिंह और उसके सैनिकों को पानी का भयानक कष्ट पहुँचा। इस दशा में हनुमन्तसिंह को आत्म-समर्पण करने के लिये मजबूर होना पड़ा। लेकिन इसके पहले ही राजा जयपुर की तरफ से खुशहाली राम ने हनुमन्तसिंह को पाँच ग्रामों का अधिकार देने के लिये प्रस्ताव किया। हनुमन्तसिंह ने उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और पाँच विशाल ग्राम लेकर उसने दुर्ग छोड़ दिया। इन दिनों में जयपुर राज्य के दरवार में एक दूसरा परिवर्तन हुआ। वहाँ के राजा प्रताप सिंह ने खुशहाली राम वोहरा को उसके अनेक अपराधों के कारण आजन्म कैद की सजा दी थी और आदेश दिया था कि भविष्य में उसके वंश का कोई भी मनुष्य कभी मंत्री पद पर न रखा जाये, इस आदेश के अनुसार खुशहाली राम बोहरा को कैद करके जयपुर की कारागार में रखा गया था। परन्तु कुछ परिस्थितियों के कारण वह छोड़ दिया गया और उसके बाद वह फिर मंत्री पद पर नियुक्त हुआ। उन दिनों में शेखावाटी के सामन्तों ने अपने प्रतिनिधियों को भेजकर प्रार्थना की कि हमारे पूर्वजों के अधिकार हमको दे दिये जायें। खुशहाली राम ने उन सामन्तों की प्रार्थना को राजा के सामने रखा और सामन्तों का पक्ष लेकर राजा से प्रार्थना करते हुए कहा-"सामन्त किसी भी राज्य के स्तम्भ होते हैं। उनके सन्तुष्ट रहने से राज्य का सदा कल्याण होता है। यह बात सही है कि शेखावत सामन्तों ने बहुत समय से अन्यायपूर्ण कार्य किये हैं और उनके अत्याचारों से राज्य में अशान्ति पैदा हुई है। परन्तु राज्य पर कभी किसी प्रकार की विपदा आने पर सामन्तों ने राज्य का पक्ष लेकर युद्ध भी किया है। मारवाड़ के युद्ध में जयपुर की सेना के साथ शेखावाटी के सामन्तो ने दस हजार सैनिकों की शक्तिशाली सेना भेजी थी। सामन्तों के इस प्रकार के उपकार भी राज्य के ऊपर हैं। यदि इन मामन्तों का भय न रहे तो मराठों का दल कभी भी इस राज्य में आकर अत्याचार कर सकता है। इसलिये हमारी समझ में इन सामन्तों को सन्तुष्ट रखना हमारा कर्तव्य है।" खुशहाली राम वोहरा की इन बातों को सुनकर राजा ने कहा-"जो आप मुनासिव समझें, इन सामन्तों के सम्बन्ध में करे।" राजा का आदेश पाकर खुशहाली राम ने शेखावत सामन्तों के साथ एक नयी सन्धि की। उसमे यह निश्चय हुआ कि रायसलोत यत् वर्ष मे माठ हजार रुपये जयपुर राज्य को