पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२१४

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चौहान वंशावली में जिन नामों का उल्लेख किया गया है, उनके विवरण अत्यन्त संक्षेप में इस प्रकार हैं, जो कुछ नामों से सम्बन्ध रखते हैं: __ अनल अथवा अग्निपाल प्रमार वंश का आदि पुरुष था। ऐसा भी कुछ लोगों का __ मत है। हर्पराज ने नाजिमुद्दीन अथवा सुबुक्तगीन को परास्त किया था। वीर वीलनदेव अथवा वीलनदेव महमूद गजनवी के साथ युद्ध करता हुआ मारा गया था। इसका दूसरा नाम धर्मराज भी है। सोमेश्वर दिल्ली के तोमर राजा अनगपाल की बेटी रूका बाई के साथ ब्याहा था। ईश्वरीदास का आकर्पण इस्लाम की तरफ हो गया था। पृथ्वीराज दिल्ली के सिंहासन पर बैठा और सन् 1193 ईसवी में शहाबुद्दीन गौरी के द्वारा मारा गया। रेनसी पृथ्वीराज का उत्तराधिकारी बनाया गया। उसका नाम दिल्ली के स्तम्भ में लिखा हुआ मिलता है। विजयदेव राज दिल्ली पर होने वाले आक्रमण में मारा गया। ___ लखनसी के इक्कीस लड़के हुए। उनमें सात लड़के विवाहिता रानियों से पैदा हुए थे। उनके द्वारा चौहान वंश की सात शाखाओं की प्रतिष्ठा हुई। बीसलदेव से पृथ्वीराज तक और भी छः राजाओं के नामों के उल्लेख मिलते हैं। लेकिन इन सब में बीसलदेव और पृथ्वीराज का नाम अधिक प्रसिद्ध है। वास्तव में पृथ्वीराज ने बीसलदेव की तरह वीरता और ख्याति में गौरव प्राप्त किया था। उसने अनेक युद्धों में मुसलमानों तथा दूसरे शत्रुओं को पराजित किया था। बीसलदेव के अधीन जो राजा अपनी सेनाओं के साथ युद्ध के लिए आकर एकत्रित हुए थे, कवि चन्द के ग्रन्थ में उनका उल्लेख मिलता है। लेकिन उनमें केवल चार राजाओं के समय का जिक्र किया गया है और हम उनमें केवल एक राजा के समय का ही सही रूप में वर्णन कर सके हैं। शेष तीन राजाओं के समय का निर्णय अप्रत्यक्ष है। इसीलिए उनको छोड दिया है। पहले राजा भोज का लडका धार का स्वामी उदयादित्य प्रमार था। मैंने अनेक लिपियों और शिलालेखों के आधार पर माना है कि उदयादित्य का समय सन् 1100 से 1150 तक था। इस दशा में जब उदयादित्य का सेना लेकर बीसलदेव के यहाँ आना साबित होता है तो साफ जाहिर है कि बीसलदेव का समय उदयादित्य के समय के साथ-साथ था। इसके सिवा, कुछ प्रमाण और भी इसकी सहायता में हमको मिलते हैं, जो इस प्रकार हैं: कवि चन्द ने देरावल के भट्टी लोगों का बीसलदेव के पास आना स्वीकार किया है। उस दशा में भट्टी लोगों का नगर और उनकी वर्तमान राजधानी जैसलमेर के अस्तित्व का प्रमाण मिलता है। जमुना और गंगा के मध्यवर्ती अन्तर्वेद के कछवाहों का आना कवि चन्द्र के अनुसार साबित है। इससे भी उस समय का अनुमान होता है। क्योंकि उस समय कछवाहो ने नरवर से जाकर अम्बेर में अपनी राजधानी कायम की थी और वह उस समय प्रसिद्ध नहीं हुई थी। 206