पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

मेवाड़ के शिलालेखों से हमें जानने को मिला है कि समरसिंह का पितामह तेजसिंह राजा वीसलदेव का मित्र था। कहा जाता है कि वीसलदेव चौसठ वर्ष तक जीवित रहा। उससे भी उसके समय का निर्णय किया जा सकता है। इसके सम्बन्ध में अनेक ग्रन्थों के अलगअलग उल्लेखों का यहाँ पर वर्णन करके हम अनावश्यक एक भ्रम नहीं पैदा करना चाहते। इसलिये सभी ग्रन्थों, शिलालेखों और दूसरे ऐतिहासिक आधारों को समझकर जो हमने बहुत सही समझा है, उसी का हमने ऊपर उल्लेख किया है। शेष सव छोड़ दिया है। ऐतिहासिक ग्रन्थों के आधार पर ही यह स्वीकार करना पड़ता है कि राजा वीसलदेव दिल्ली के तोमर राजा जयपाल सिंह, गुजरात के राजा दुर्लभ और भीम, धार के राजा भोज और उदयादित्य एवम् मेवाड़ के राणा पद्मसिंह और तेजसिंह का समकालीन था। वीसलदेव ने जिस मुस्लिम बादशाह के साथ युद्ध की यह तैयारी की थी, वह निश्चित रूप से महमूद रहा होगा, विना किसी विवाद के इसे माना जाएगा। वीसलदेव ने उस महमूद को परास्त करके उत्तरी राजस्थान से भगा दिया था। राजा बीरन देव और अजमेर की राजा को सेनाओं से हार कर भारत से अन्तिम बार महमूद सिन्ध की तरफ भागा था। वह युद्ध हिजरी 417,सन् 1026 में हुआ था। इस समय को चन्द कवि ने सम्वत् 1086 लिखा है। लेकिन इन दोनों उल्लेखों में समय का कोई विशेष अन्तर नहीं है। वीसलदेव ने गुजरात के राजा के साथ युद्ध करके विजय प्राप्त की थी और वहाँ पर उसने अपने नाम पर वीसल नगर बसाया था। उसका वर्णन विस्तार के साथ आगामी पृष्ठों में प्रसिद्ध पृथ्वीराज के शासन के साथ किया गया है। कालिक जुहनेर में बीसलदेव का धींध नामक रहने का जो स्थान था, वह अब तक मौजूद है और वीसल का धोध कहलाता है। हाड़ा वंश के राजा कवि गोविन्द राम के राज ग्रन्थ में लिखा है कि वीसलदेव के लड़के अनुराज से हाड़ा वंश की उत्पत्ति हुई है लेकिन खीची वंश का कवि लिखता है कि अनुराज माणिक राय का लड़का था और वह खींची वंश का आदि पुरुप था। हमने यहाँ पर हाड़ा कवि का अनुसरण किया है। ___ गोविन्दराम ने लिखा है कि अनुराज को सीमा पर स्थित आसिका-जिसे असि अथवा साँसी भी कहा जाता है-पर अधिकार प्राप्त हुआ था। अनुराज के लड़के अस्थिपाल और सिंध सागर के खीचीपुर पाटन के आदि पुरुप अजयराज के लड़के अनुगराज ने अपने सौभाग्य की परीक्षा के लिए गोलकुण्डा के चौहान राजा रणधीर की अधीनता में जाकर रहने का विचार किया था। लेकिन उन्हीं दिनों में कजलीवीन के बर्वरों ने एक साथ असि और गोलकुण्डा पर आक्रमण किया। चौहान राजा रणधीर ने उनका समाना किया और युद्ध करते हुए वह अपने लड़को के साथ मारा गया। राजा रणधीर के वंश में सुराबाई नाम को उसकी लड़की बच गयी। वह अपने प्राणों की रक्षा के लिए गोलकुण्डा छोड़कर असि की तरफ रवाना हुई। मारे जाने के बाद राजा रणधीर के नाम की शाखा चली। उन्हीं दिनों में आक्रमणकारियों ने असि पर भी आक्रमण किया था। उनके भय से असि का राजा अनुराज भाग गया। लेकिन उसके लड़को ने युद्ध की तैयारी की और अपने नगर के बाहर जाकर उन्होंने आक्रमणकारियो का सामना किया। दोनों ओर से भयानक युद्ध उत्पन्न हुआ। उस युद्ध में अस्थिपाल पूरी तरह से घायल 207