पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२२

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यदु भाटी वंश के पंजाब से भागने के समय से लंकर मरुभूमि में उनकी राजधानी के कायम होने के समय तक प्रत्येक संघर्ष में लंगा जाति के लोगों ने यदु, भाटी लोगों की वरावर सहायता की थी। इसीलिए उस जाति के सम्बन्ध में यहाँ पर कुछ प्रकाश डालना आवश्यक है। लंगा जाति के लोग वास्तव में राजपूत थे और वे अग्निकुल की चार शाखाओं में चालुक्य अथवा मालंकी राजपूतों से सम्बन्ध रखते थे। वे लॉकोट के प्राचीन निवासी थे। इसमें प्रकट होता है कि आबू पर्वत से आने के बाद और हिन्दू धर्म स्वीकार करने के पहले वे लोकोट में रहते थे। सम्वत् 787 सन् 731 ईसवी में यदु भाटी लोगों के द्वारा तनोट के दुर्ग के निर्माण से लंकर सम्वत् 1530 सन् 1474 ईसवी तक सात सा तैंतालीस वर्पा का एक लम्बा समय होता है। इन दिनों में लगातार भाटी जाति के साथ लंगा लोगों का संघर्ष और युद्ध चला था। उसके बाद वह संवर्य एक साथ समाप्त हो गया और उसके थोड़े दिनों के पश्चात् वावर ने भारतवर्ष में आक्रमण किया। उन दिनों में इस जाति का अस्तित्व तिरोहित हो गया था। तवारीख फरिश्ता में इस जाति के लोगों को मुलतान के राजवंशी कहकर उल्लेख किया है और कुछ ऐसी बातें भी लिखी गयी हैं, जो इस वंश के सम्बन्ध में जानने के योग्य हैं। इस वंश के पाँच राजाओं में से पहला राजा हिजरी सम्वत् 847 सन् 1440 ईसवी में रावल चाचक सं मरने के तीस वर्ष पूर्व राज्य करता था। तवारीख फरिश्ता के अनुसार जब तक खिजर खाँ मैयद दिल्ली के सिंहासन पर रहा, शेख यूसुफ को अपना प्रतिनिधि बनाकर मुलतान भेजा। शेख यूसुफ ने मुलतान में जाकर जिन राजाओ के साथ सम्बन्ध कायम किये, उनमें लंगा जाति का राजा राय सेहरा भी एक था। राय सेहरा ने मुलतान में जाकर शेख यूसुफ के साथ अपनी लडकी के विवाह का विचार प्रकट किया और उसकी अधीनता को स्वीकार करने के लिए भी वह राजी हो गया। शेख युसूफ ने राय सेहरा की बात को मंजूर कर लिया। राय सेहरा के इस प्रस्ताव का अभिप्राय क्या था, यह बाद में लोगों को मालूम हुआ। अपने उस प्रस्ताव के बहाने उसने शेख युसूफ को कैद करके दिल्ली भेज दिया और अपना नाम कुतुबुद्दीन रखकर वह मुलतान का अधिकारी बन गया। फरिश्ता ने अपने इतिहास में राय सेहरा और उसके वंश वाले लंगा को अफगान माना है। सेवी राज्य के रहने वाले नूमरी जाति के थे और यही नूमरी जाति प्रसिद्ध जाट वंश की एक शाखा थी। भाटी वंश के इतिहास लेखक ने लंगा लोगों को अपने ग्रन्थ मे कहीं पर पठान और कहीं पर राजपूत लिखा है। पठान अथवा अफगान प्राचीन काल में, विशेषकर राय सेहरा के दिनों में मुसलमान थे। राय शब्द राय सेहरा के हिन्दू होने का परिचय देता है। प्रसिद्ध इतिहासकार एलफिन्मटन ने अफगानों की उत्पत्ति बहूदी लोगों से मानी है। यदुवंश और यहूदी वंश में कोई अन्तर नहीं मालूम होता। ऐमा मालूम होता है कि एक ही वंश के दो नाम किसी प्रकार बन गये हैं। देवरावल की दक्षिणी सीमा पर लोद्र राजपूत रहते थे। उनकी राजधानी का नाम लुद्रवा था। यह नगर अत्यन्त विशाल था। उस राजधानी में बारह फाटक थे। लुद्रवा के राजपुरोहित 16