पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२२६

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इस दशा में चित्तौड़ के मन्त्रियों और सामन्तों ने सोचा कि इतनी जल्दी बूंदी को पराजित करना किसी प्रकार सम्भव नहीं है। इसलिये राणा ने जो प्रतिज्ञा की है वह किसी प्रकार संगत नहीं मालूम होती। राणा की प्रतिज्ञा के सम्बन्ध में चित्तौड़ के मन्त्रियों और सामन्तों ने बड़ी गम्भीरता के साथ परामर्श किया। उनकी समझ में राणा की यह प्रतिज्ञा अत्यन्त भयानक मालूम हुई, इसलिये कि बिना अन्न-जल ग्रहण किये मनुष्य कितनी देर तक जीवित रह सकता है, इतने थोड़े समय में चित्तौड़ से बूंदी का साठ मील लम्बा रास्ता पार करना भी सम्भव नहीं मालूम होता। इसलिए उन लोगों ने आपस में यह निर्णय किया कि राणा की इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिये कोई उपाय निकालना चाहिये। इस आधार पर उन सभी लोगों ने मिलकर एक निर्णय किया और राणा से प्रार्थना की कि हम लोग चित्तौड़ में एक कृत्रिम बूंदी का निर्माण करते हैं। आप अपनी सेना लेकर उसके दुर्ग पर अधिकार करके अपनी प्रतिज्ञा को पूरा कीजिये। ___सामन्तों की इस प्रार्थना को सुनकर राणा ने उसको स्वीकार कर लिया। चित्तौड़ में तुरन्त कृत्रिम बूंदी का निर्माण किया गया और उसमें बूंदी की सभी बातों की रचना की गयी। बूंदी राज्य का जो भाग जिस नाम से सम्बोधित किया जाता था, इस कृत्रिम बूंदी में स्थान बनाये गये और उसका दुर्ग:भी तैयार कर दिया गया। चित्तौड़ में पठार के हाड़ा लोगों की एक छोटी-सी सेना थी, जो राणा के यहाँ काम करती थी। कुम्भा वैरसी उस सेना का सेनापति था। कुम्भा वैरसी शिकार खेलकर लौट रहा था। उसने मार्ग में एक कृत्रिम दुर्ग को बनते हुए देखा, वह उसके पास गया। उसके पूछने पर लोगों ने बताया कि इस कृत्रिम बूंदी को विजय करके राणा अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करेगा। कुम्भावैरसी के हृदय में उसी समय जातीय गौरव की भावना उदित हुई। उसने उसी समय कहा- "बूंदी और उसके दुर्ग के कृत्रिम होने पर भी हम उसकी रक्षा करेंगे। यहाँ पर हमारी जातीय मर्यादा का प्रश्न है।" दुर्ग के निर्माण का कार्य समाप्त होने पर राणा के पास सूचना भेजी गयी। राणा अपनी सेना लेकर उस कृत्रिम दुर्ग पर अधिकार करने के लिये रवाना हुआ। पहले से यह योजना बनायी गयी थी कि दुर्ग में सीसोदिया सेना रखकर राणा के आक्रमण के समय खाली बन्दूकें फायर की जायें और दिखावटी दुर्ग की रक्षा की जावे। यह योजना पहले से निश्चित थी। परन्तु सेना के साथ दुर्ग की तरफ राणा के बढ़ते ही बन्दूकों से निकल-निकल कर गोलियाँ राणा के सैनिकों का संहार करने लगीं। यह देखकर राणा को बहुत आश्चर्य मालूम हुआ। उसने रहस्य का पता लगाने के लिये अपना एक दूत भेजा। उस दूत के वहाँ पहुँचने पर कुम्भा वैरसी ने कहाः "तुम राणा से जाकर कहो कि बूंदी के कृत्रिम दुर्ग को जीतकर हाड़ा वंश को अपमानित करना आसान नहीं हैं।" इसके बाद उस कृत्रिम दुर्ग के बाहर युद्ध आरम्भ हुआ। जाति के सम्मान की रक्षा करने के लिये कुम्भा वैरसी और उसके सैनिकों ने राणा की सेना के साथ शक्ति भर युद्ध करके अपने प्राणों को उत्सर्ग किया। उस युद्ध से बचकर और भागकर एक भी हाड़ा सैनिक ने अपने प्राणों की रक्षा नहीं की। राणा ने इस प्रकार कृत्रिम बूंदी और उसके दुर्ग पर विजय प्राप्त की। परन्तु उसके बाद उसने बूंदी राज्य पर अधिकार करने का इरादा छोड़ दिया। उसकी समझ में आ गया कि 218