पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२३

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ने अपने राजा से अप्रसन्न होकर देवराज के यहाँ जाकर आश्रय लिया। उसने लुद्रवा के राजा के विरुद्ध देवराज को उकसाया। उसकी बातों से प्रोत्साहित होकर देवराज ने लुद्रवा नृपभानु के पास उसकी लड़की के साथ विवाह करने का सन्देश भेजा। राजा नृपभानु ने इस प्रस्ताव को सम्मान के साथ स्वीकार कर लिया। इसलिए वारह सौ साहसी अश्वारोही सेना को लेकर विवाह के लिए देवराज लुद्रवा राजधानी पहुंच गया। वहाँ के राजा ने आदरपूर्वक उनका स्वागत किया परन्तु राजधानी में पहुंचते ही देवराज के अश्वारोही सैनिकों ने वहाँ पर आक्रमण किया और लुद्रवा के राजा को परास्त करके देवराज वहाँ के राजसिंहासन पर बैठ गया। इसके बाद उसने नृपभानु की लड़की के साथ विवाह किया और अपने साथ के सैनिकों का एक दल वहाँ पर छोड़कर वह देवरावल लौट आया। उसके अधिकार में इस समय छप्पन हजार अश्वारोही सेना थी, जिस पर वह शासन करता था। यशोकर्ण नाम का व्यवसायी देवरावल से धारा नगरी में जाकर रहने लगा था। यहाँ के राजा ब्रिजभानु ने उसे सम्पत्तिशाली समझ कर कैद करवा लिया और उसकी सम्पूर्ण सम्पत्ति छीन ली। यशोकर्ण ने देवरावल में आकर रोते हुए देवराज से प्रार्थना की कि- "राजन, नगरी के राजा ने बिना कोई अपराध के मुझे कैद कर लिया, मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति छीनकर अनेक प्रकार के कष्ट मुझे दिये और उसने बाद में मुझे छोड़ दिया। कैद करने के समय मेरे गले में रस्सी वाँधी गयी थी, जिसके निशान अव तक मेरी गर्दन पर मौजूद हैं।" देवराज ने यशोकर्ण की प्रार्थना को सुनकर उसकी गर्दन पर रस्सी के निशान देखे। वह मन ही मन सोचने लगा कि यशोकर्ण के साथ जो यह अपमानपूर्ण व्यवहार किया गया है, वह मेरा अपमान है। इसलिए क्रोध में आकर उसने प्रतिज्ञा की कि मैं इस अपमान का जब तक बदला न ले लूँगा, अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा। देवराज ने धारानगरी के राजा से अपमान का बदला लेने के लिए प्रतिज्ञा की। परन्तु उस समय उसने देवरावल और धारा नगरी की दूरी का विचार नहीं किया। विना अन्नग्रहण किये तो कोई भी मनुष्य कई दिनों तक रह सकता है। परन्तु विना जल के एक दिन भी काटना कठिन हो जाता है इसलिए देवरावल से धारानगरी पहुँचने और उसको विजय करने के लिए समय की आवश्यकता थी। उतने समय तक विना जल के कोई मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। इस दशा में देवराज की प्रतिज्ञा का क्या परिणाम होगा, इस प्रश्न को सोचकर देवराज के मंत्री एक साथ चिन्तित हो उठे। इस विपय में मंत्रियों ने देवराज के पास जाकर बातचीत की और जो संकट सामने था,उस पर विचार करने के लिए देवराज से प्रार्थना की। उनकी वातों को सुनकर देवराज ने क्षण भर कुछ सोचा और अपने मंत्रियों की तरफ देखकर कहा- "फिर अब क्या होना चाहिये?" मन्त्रियों ने आपस में परामर्श करके और एक मत होकर देवराज से कहा- "राजन्, सब कुछ हो सकता है। धारा नगरी के निवासी प्रमार राजपूत हैं । वहाँ का राजा भी वंश का है। आपकी सेना में बहुत से सैनिक प्रमार वंशी हैं। मिट्टी की एक धारा नगरी तेयार करवायी जाये। आपकी सेना के प्रमार राजपूत अपने हाथों में तलवारें लेकर इस धारा नगरी की रक्षा करे और आप अपनी सेना के साथ उन पर आक्रमण करें। उस समय आप के प्रमार वंशी सैनिक पराजित हों और इस प्रकार विजयी होकर आप अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा करे।" . 17