पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२४७

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वृंदी राज्य के प्रधान सामन्त दुर्जन सिंह के साथ राव अनिरुद्ध सिंह का कुछ झगड़ा पैदा हुआ। उसके कारण दुर्जन सिंह दक्षिण से चला आया और अपनी जागीर में आकर उसने अनिरूद्ध सिंह के विरुद्ध युद्ध की तैयारी की। अपने वंश के लोगों की एक सेना तैयार करके वह बूंदी राजधानी में पहुँच गया और बलवन्त सिंह का अभिषेक करके उसने उसको बूंदी राज्य का शासक वोपित किया। ____ यह समाचार वादशाह औरंगजेब को मिला। उसने अनिरुद्ध सिंह के साथ अपनी एक सेना भेजकर दुर्जन सिंह को भगाने और बूंदी राज्य पर अधिकार करने का आदेश दिया। अनिरुद्ध सिंह उस सेना के साथ वृंदी में पहुंचा और दुर्जन सिंह को परास्त करके उसने वलवन्त सिंह को सिंहासन से उतार दिया। इसके वाद अनिरुद्ध सिंह ने सिंहासन पर बैठकर बूंदी राज्य की व्यवस्था की। इन्हीं दिनों में बादशाह का लड़का शाह आलम उत्तरी भारत का शासक होकर लाहौर गया। राव अनिरूद्ध सिंह भी उसके साथ था। आमेर का राजा विष्णु सिंह भी बादशाह की तरफ से वहाँ भेजा गया। कुछ दिनों के बाद राव अनिरूद्ध सिंह की वहाँ पर मृत्यु हो गयी। ___ राव अनिरूद्ध सिंह के बुधसिंह और जोधसिंह नामक दो लड़के थे। उन दोनों में वुधसिंह वड़ा था। इसीलिए वह पिता के सिंहासन पर बैठा। बुधसिंह के अभिषेक के वाद थोड़े ही दिनों में वादशाह औरंगजेव औरंगाबाद में बीमार पड़ा। उसकी बीमारी धीरे-धीरे वढ़ती गयी और जव उसके वचने की कोई आशा न रह गयी तो उसके सामन्तों और अमीर उमराओं ने उससे पूछा ; "आपका उत्तराधिकारी कौन है और अपने वाद मुगल सिंहासन पर वैठने के लिए किसके पक्ष में आप निर्णय देते हैं?" इस प्रकार के प्रश्न को सुनकर मरणासन्न अवस्था में बादशाह औरंगजेव ने कहा : "मेरे वाद मुगल सिंहासन पर कौन बैठेगा, यह मैं ईश्वर पर छोड़ देता हूँ। यो तो मैं चाहता हूँ कि मेरा लड़का बहादुरशाह आलम मेरे वाद सिंहासन पर बैठे। परन्तु मेरा ख्याल है कि शाहजादा आलम अपने लिए कोशिश करेगा।" औरंगजेब ने जो कुछ कहा था, अन्त में वही हुआ। आजमशाह ने अपने बड़े भाई का विरोध किया और वह स्वयं मुगल सिंहासन पर बैठने के लिये कोशिश करने लगा। इस विरोध में दोनों भाइयों के वीच भयानक संवर्य हुआ। दोनों तरफ से युद्ध की तैयारियाँ होने लगीं । जो हिन्दू राजा वहादुर शाह के पक्ष में थे, उनको प्रोत्साहित किया गया। उन राजाओं में बूंदी का राव वुधसिंह भी था। उसकी आयु उस समय बहुत थोड़ी थी और वह अपने छोटे भाई जोधसिंह की मृत्यु से बहुत दु:खी था। वहादुर शाह आलम ने जव जोधसिंह की मृत्यु का समाचार सुना तो उसने बूंदी राजधानी में जाकर उसका श्राद्ध कर्म करने के लिए वुधसिंह को आदेश दिया। राव वुधसिंह ने इसका उत्तर देते हुए वहादुर शाह से कहा : "आपकी वर्तमान परिस्थिति में मेरा बूंदी जाना किसी भी दशा में मुनासिव नहीं है। धोलपुर के जिस युद्ध-क्षेत्र में मेरे वंश के अनेक शूरवीरों ने युद्ध करके अपने प्राणों की आहुतियाँ दी थी और जिस युद्ध भूमि में मेरे पूर्वज छत्रसाल ने अपने प्राणों की वलि दी थी, उसी युद्ध-भूमि में जाकर बादशाह की विजय के लिए मैं युद्ध करूँगा। इस समय सबसे पहला मेरा कर्त्तव्य यही है।" 239