पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२७४

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बूंदी राज्य के इतिहास मे लिखा जा चुका है कि आमेर के राजा जयसिंह ने दिल्ली के बादशाह के दरबार में रहकर अपने राज्य की शक्ति को उन्नत बना लिया था और राज्य की सीमा में बहुत वृद्धि कर ली थी। इस प्रकार अपनी बढ़ी हुई शक्तियों के द्वारा बूंदी के राजा को सिहासन से उतार कर उसको सामन्त का पद देने का निर्णय किया था और उसके उत्तराधिकारी ने उसका समर्थन करके बूंदी के राजा बुधसिंह को सिंहासन से उतार दिया। राजा बुधसिंह ने वृद्धावस्था मे इस मानसिक पीडा के कारण परलोक की यात्रा की। अन्त में अजमेर के राजा ने मराठों से परास्त होकर आत्म-हत्या कर ली। आमेर के राजा ने बुधसिंह को सिंहासन से उतार कर एक सामन्त को वहाँ के सिहासन पर विठाया और उससे कर लेने का निश्चय किया। बूंदी राज्य में इस प्रकार सफलता पाकर आमेर के राजा ने कोटा राज्य पर अधिकार करने का इरादा किया। दुर्जनशाल उस समय कोटा के सिंहासन पर था। सम्वत् 1800 इंसवी में आमेर के राजा ईश्वरीसिंह ने कोटा पर आक्रमण करने के लिए तीन मराठा सेनापतियों और जाटों के सेनापति सूर्यमल्ल को सेनाओं के साथ बुलाया और उन सबको लेकर ईश्वरी सिंह ने कोटा राज्य पर आक्रमण किया। कोठड़ी नामक स्थान पर दोनो ओर मे युद्ध हुआ। उसके बाद जयपुर के राजा ने अपनी विशाल सेना लेकर कोटा की राजधानी को घेर लिया। आक्रमणकारी तीन महीने तक उस राजधानी को घेरे हुए पडे रहे। लेकिन उनको सफलता न मिली। अन्त में निराश होकर आमेर का राजा ईश्वरी सिंह सब के साथ लोटकर चला गया। इन्हीं दिनों में मराठा सेनापति जय अप्पा सिंधिया का एक हाथ गोली से उड गया। शत्रुओं के आक्रमण के दिनो मे झाला राजपूत हिम्मत सिंह कोटा राज्य में प्रधान सेनापति था। उसने उस अवसर पर बड़े साहस से काम लिया था और प्राणो की परवाह न करके उसने अपनी राजभक्ति का परिचय दिया था। उसी के परामर्श और मध्यस्थ होने से बाजीराव ने दुर्जनशाल को नाहरगढ़ का दुर्ग दे दिया था। सन् 1729 और 1734 के बीच की घटनाओं के समय जालिमसिंह का जन्म हुआ और उसने अपने जीवन काल मे बहुत अधिक कीर्ति प्राप्त की। बूंदी और कोटा राज्यों में शत्रुता हो चुकी थी। लेकिन दुर्जनशाल ने उसको भुलाकर बूंदी के राजा बुधसिंह के लडके उम्मेद सिंह की सहायता की और उसको अपने पूर्वजो के राज्य पर अधिकार मिल जाए, इसके लिए उसने चेष्टा की। सबसे पहले होलकर से सहायता मॉगने के लिए उसको परामर्श दिया, इसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। मराठा सेनापति होलकर से सहायता लेने का यह परिणाम हुआ कि होलकर ने दुर्जनशाल से भी कर लेना आरम्भ कर दिया और दुर्जनशाल को इसके लिए विवश होना पडा। दुर्जनशाल ने कई एक नगरी को जीतकर और खीची वश का फूलवरोद नामक इलाका लेकर अपने राज्य में मिला लिया था। गूगोर नामक दुर्ग के सम्बन्ध में हाडा लोगो के साथ खीची जाति का युद्ध हुआ। गूगोर के अधिकारी बलभद्र ने बडी वीरता के साथ अपने दुर्ग की रक्षा की। उस युद्ध में बलभद्रपुरा, रामपुरा और शिवपुर आदि के सामन्त संगठित होकर हाडा लोगों के साथ लडे थे। सम्वत् 1810 मे हाडा और खीची लोगो का युद्ध हुआ। बूंदी के राजा उम्मेद सिंह ने इस युद्ध मे राजा दुर्जनशाल की सहायता की और उसकी वीरता से कोटा के राजा को उस युद्ध मे सफलता मिली। 268