पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२८३

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के संरक्षण का भार किसको सौंपा जाए। अन्त में गुमान सिंह ने अपने सव सामन्तों की मौजूदगी में दस वर्ष के बालक उम्मेद सिंह के संरक्षण का भार जालिम सिंह को सौंपा। इसके वाद उसकी मृत्यु हो गयी। राजा गुमान सिंह के मर जाने के बाद सन् 1771 ईसवी में वालक उम्मेद सिंह कोटा के सिंहासन पर बैठा। पुरानी प्रथा के अनुसार अभिषेक के दिनों में वह कैलवाड़ा के राजा के साथ युद्ध करने गया। उस युद्ध मे विजयी होकर उसने कैलवाड़ा अपने राज्य में मिला लिया। राज सिंहासन पर उम्मेद सिंह के बैठने के पश्चात् जालिम सिंह ने शासन का उत्तरदायित्व अपने हाथों में लिया। वह दूरदर्शी और राजनीतिज्ञ था। उसने कोटा राज्य में अपना आधिपत्य इस प्रकार आरम्भ किया कि जीवन के अन्तिम समय तक उसकी शक्तियाँ राज्य में कायम रहे। राजा गुमान सिंह ने मरने के समय जालिम सिंह को राज्य की रक्षा का भार सौंपा था। उस समय राज्य के सभी सामन्त उपस्थित थे। लेकिन वे सभी जालिम सिंह से प्रसन्न न थे। इसलिए विरोधी सामन्तों को राजा गुमान सिंह का यह निर्णय अच्छा न मालूम हुआ। परन्तु उस समय उन लोगों ने किसी प्रकार का विरोध न किया। कोटा राज्य में जालिम सिंह का प्रभुत्व वढ़ता हुआ देखकर विरोधी सामन्त चिन्तित होकर उसके साथ ईर्ष्या करने लगे और आपस में उन लोगों ने जालिम सिंह के प्रभाव को निर्वल करने का निर्णय किया। जालिम सिंह कोटा राज्य का सेनापति था। लेकिन उसका सम्बन्ध युद्धों के साथ था। राज्य के शासन-विभाग के साथ उसका कोई सम्बन्ध न था। शासन-विभाग में राय अखैराम सबसे बड़ा अधिकारी था। शासन की नीति को वह भली प्रकार जानता था। जालिम सिंह के सेनापति होने के दिनों में अखैराम कोटा का प्रधानमन्त्री था। उसके शासनकाल में कोटा राज्य ने सभी प्रकार की उन्नति की थी। आरम्भ में जालिम सिंह के विरोधियों की संख्या कम थी। लेकिन उसने राज्य में अपना अधिकार और आधिपत्य जितना ही वढ़ाया, उसके विरोधियों की संख्या कोटा राज्य में उतनी ही बढ़ती गयी। जालिम सिंह राज्य का सेनापति था। परन्तु वह शासन में भी अपना प्रभुत्व रखने लगा। राज्य के मन्त्रियों और सामन्तों को यह किसी प्रकार सहन न हुआ। उन लोगों ने विरोध करके इस बात को साफ-साफ कहना आरम्भ किया कि राजा गुमान सिंह ने जालिम सिंह को शासन में कोई अधिकार नहीं दिया था। जो सामन्त जालिम सिंह के विरोधी थे, उनमें राजा गुमान सिंह का भतीजा स्वरूप सिंह और वाँकडोत का सामन्त भी था। इस सामन्त को पदच्युत करके जालिम सिंह को सेनापति का पद दिया गया था। वालक उम्मेद सिंह का धाभाई जसकर्ण भी जालिम सिंह का विरोधी था। वह बुद्धिमान और दूरदर्शी था। इसलिए वह बालक उम्मेद सिंह के पास हमेशा रहा करता था। जो सामन्त जालिम सिंह के विरोधी थे, उनको जसकर्ण से बड़ी सहायता मिली। जालिम सिंह के विरुद्ध विरोधी सामन्तों ने कई वार पड़यन्त्र रचे। परन्तु राजनीतिज्ञ जालिम सिह ने उन विरोधियों को किसी प्रकार सफल नहीं होने दिया। जालिम सिंह की कूटनीति इस समय राज्य में पूरी तोर पर चल रही थी। स्वरूप सिंह उसका भीपण रूप से विरोधी हो रहा था। इसलिए जालिम सिंह ने उसको बदला देने का निश्चय किया। स्वरूप सिंह, धाभाई जसकर्ण 277