पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२८७

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पड़यन्त्रकारियों ने सांचा हो कि जालिम सिंह ने उम्मेद सिंह को अपने हाथ की कठपुतली वना रखा है इसलिए उसको सिंहासन से उतार दिया जाए। इस प्रकार का अनुमान किया जा सकता है। इन दिनों में कोटा राजवंश का राजसिंह जो उम्मेद सिंह का चाचा था। अपने दोनों भाइयों गोवर्द्धन सिंह और गोपाल सिंह के साथ जीवित था। आथून में सामन्त के विद्रोह के दिनो में गोवर्द्धन सिंह और गोपाल सिंह दोनों विद्रोहियों की सहायता कर रहे थे। इसलिए जालिम सिंह ने उन दोनों भाइयों को कैद करवा लिया। दस वर्ष तक कारागार में रह कर गोवर्द्धन की मृत्यु हो गयी। उसके बाद उसका छोटा भाई गोपाल सिंह भी बहुत दिनों तक कैदी की दशा में रहने के बाद मर गया। उम्मेद सिंह का चाचा राजसिंह वृद्ध हो गया था। वह बहुत दिनों तक जीवित रहा। लेकिन किसी पड़यन्त्र में वह शामिल न होकर एक मन्दिर में रहता था। सब मिला कर अठारह बार जालिम सिंह के विरुद्ध पड़यन्त्र किये गये। परन्तु विरोधियों को एक वार भी सफलता न मिली। अन्त में राजमहल की स्त्रियों ने जालिम सिंह को मार डालने की एक योजना बनाई, उसमें वह भयानक रूप से फँस गया था। यदि राजमहल की एक स्त्री साहस करके उसको बचाने की चेष्टा न करती तो जालिम सिंह क सामने किस प्रकार का संकट उपस्थित होता, यह नहीं कहा जा सकता। राजमहल की स्त्रियों ने उसको कैद करने अथवा मार डालने का प्रयत्न किया। वह राजमहल में बुलाया गया। उसके महल में पहुँचते ही बहुत-सी राजपूत स्त्रियों ने अपने हाथों में तलवारें लेकर उस पर आक्रमण किया। जालिम सिंह महल के भीतर यह दृश्य देखकर घबरा उठा। उसको उस प्रकार के संकट की कोई आशंका न थी। आक्रमणकारी महिलाओं ने उसको कैद कर लिया। इस समय अपनी मुक्ति के सम्बन्ध में कोई उपाय उसकी समझ में न आया। जालिम सिंह को कैद करके राजपूत स्त्रियों ने उससे प्रश्न पूछने आरम्भ कर दिये। जालिम सिंह ने कोटा राज्य में सेनापति का पद पाकर और वालक उम्मेद सिंह का संरक्षक वनने के बाद जो कुछ भी किया था, उन स्त्रियों ने एक-एक घटना पर अलग-अलग प्रश्न करना आरम्भ कर दिया। उन स्त्रियों ने इन्हीं प्रश्नों के बीच उसे मार डालने के लिए पूरी तोर पर इरादा कर लिया था। लेकिन इसी अवसर पर राजमहल की एक राजपूत स्त्री ने बड़ी बुद्धिमानी के साथ जालिम सिंह का पक्ष लिया। हाड़ा वंश के इतिहास में लिखा हुआ उल्लेख इस बात को स्पप्ट रूप से प्रकट करता है कि जालिम सिंह एक सुन्दर राजपूत था और जिस स्त्री ने उसका पक्ष लिया वह बहुत दिनों से उसके साथ प्रेम करती थी। उस स्त्री के बिगड़ने और उसके द्वारा सहायता करने के कारण जालिम सिंह किसी प्रकार महल से निकलकर अपने प्राणों की रक्षा कर सका। इस प्रकार जालिम सिंह के विरुद्ध जितने भी पड़यन्त्र शुरू किये गये, उनमें एक भी सफल नहीं हुआ। जालिम सिंह में अनेक ऐसे गुण थे, जिनके कारण अपने विरोधियों के बीच में रहकर भी वह सुरक्षित बना रहा। उसका एक गुण प्रधान यह था कि वह अपने विरोधियों से बदला लेने की बात अधिक नहीं सोचता था और प्रार्थना करने पर वह विद्रोहियों को भी क्षमा कर देता था। वह रात में एक लोहे के मजबूत कटहरे में सोया करता था और प्रायः निर्भीक रहता था। साथ ही वह इतनी सावधानी से काम लेता था जिससे कोई विद्रोही उसके जीवन को 281