पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३०८

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जालिम सिंह ने अपने इन व्यवहारों के द्वारा उम्मेदसिंह के प्रति जिस राजभक्ति का परिचय दिया था, उसकी जितनी प्रशसा की जाए, वह भी थोड़ी समझी जाएगी। जालिम सिंह के हृदय में राजभक्ति की बहुत ऊँची भावना थी, इसके प्रमाण में उसके जीवन की अनेक बातें जानने के योग्य है। किसी दिन जालिम सिंह अपने महल के मन्दिर में बैठा हुआ पूजा कर रहा था। कठोर जाड़े के दिन थे और जिस भूमि पर वह पूजा करने वैठा था, वह पानी से कुछ भीगी हुई थी। इसलिए जालिम सिंह ने एक रजाई अपने कन्धों पर डाल ली थी। उसकी उस पूजा के समय उम्मेदसिंह के छोटे लडके आ गये। उनको देखकर जालिम सिंह ने अपने कन्धों पर पड़ी हुई रजाई को जमीन पर बिछा दिया और उन राजकुमारों को उस पर बैठने के लिए कहा। राजकुमार उस पर वैठ गये और वे उस समय तक वहाँ वैठे रहे, जब तक जालिम सिंह पूजा करता रहा। उसकी पूजा समाप्त होने के वाद राजकुमार वहाँ से उठ कर चले गये। उनके चले जाने पर जालिम सिंह के एक नौकर ने सोचा कि हमारे स्वामी इस रजाई को अपने काम में न लावेगे, क्योंकि वह गीली जमीन पर बिछायी जाने के कारण और राजकुमारों के बैठने से गन्दी हो गयी थी। यह सोच कर उस नौकर ने उस रजाई को महल के एक गन्दे कोने में फेंक देना चाहा। जालिम सिंह ने उसके मन के भाव को समझ लिया। उसने उसी समय नौकर के हाथ से उस रजाई को लेकर अपने शरीर पर डाल लिया और नौकर की तरफ देखकर उसने बड़ी श्रद्धा के साथ कहा : "राजकुमारों के चरणो को स्पर्श करके यह रजाई पवित्र हो गयी है।" उसका नौकर इस बात को सुनकर जालिम सिंह की तरफ देखता रह गया। जालिम सिंह का व्यवहार सभी के साथ बहुत उत्तम श्रेणी का था। निजी कर्मचारियो से लेकर राज्य के कर्मचारियों तक सभी उससे प्रसन्न रहते थे। जालिम सिंह ने अपने व्यवहारो के द्वारा राज्य से लेकर बाहर तक सबको अपना बना लेने में आश्चर्यजनक सफलता पायी थी। सभी लोग उसको अपना मित्र समझते थे। यद्यपि अनेक अवसरों पर वह कर्मचारियों के साथ कठोर व्यवहार करता था। परन्तु अपनी सहानुभूति के आवरण को वह कभी नष्ट नहीं होने देता था। उसका इसी प्रकार का व्यवहार दूसरे राज्यों के लोगों के साथ भी था। इसीलिए छोटे से लेकर बड़े तक सभी उससे प्रसन्न रहते थे। किसी कामकाज के समय, धार्मिक अनुष्ठान के समय, किसी उत्सव और विवाह के समय अथवा इस प्रकार के किसी भी दूसरे अवसर पर जालिम सिंह उन सभी लोगों को जी खोलकर पारितोपिक में रुपये देता था, परन्तु किसी के अन्याय और अपराध करने पर वह बहुत कठोर व्यवहार करता था। उसके राज्य में एक बड़ी विशेषता यह थी कि उसके यहाँ पठान और मराठे सबसे अधिक विश्वासी माने जाते थे। इसीलिए उसने उन लोगो को अपने यहाँ अच्छे स्थानों पर कर्मचारी बना कर रखा था। पठानों को उसने सेना में ऊँचे पद दिये थे और मराठों को अपने यहाँ रखकर उसने राजनीतिक अधिकार सौंपे थे। वह अपने वश के आदमियों को राज्य में किसी अच्छे पद पर नियुक्त नहीं करता था। उसके शासन के अन्तिम दिनो मे शक्तावत वश का विशन सिंह कोटा राज्य मे सेनापति के पद पर था। इस एक उदाहरण को छोड़कर कोई दूसरा उदाहरण उसके राज्य में इस प्रकार का नहीं मिलता। दलेलखॉ और 302