पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३२९

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भेजी। इसके चौदह वर्ष बाद मॉगरोल में महाराव के साथ युद्ध आरम्भ होने से दूसरे दिन बमौलिया के सामन्त की माता का भेजा हुआ एक पत्र मिला। सामन्त की माता ने मुझे आशीर्वाद देते हुए पत्र में लिखा था कि मेरे लडके ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए युद्ध में महाराव किशोर सिंह का साथ दिया है। इसलिए मेरे लड़के की आप रक्षा करेंगे। मैंने बड़े हपं के साथ उस पत्र का उत्तर देते हुए सामन्त की माता को लिखा कि पत्र लाने वाले आदमी के लौट कर आपके पहुंचने के पहले ही आपका लड़का सुरक्षित आप के पास पहुँच जायेगा। बमौलिया का सामन्त आथून के उस सामन्त का वंशज था,जो किसी समय जालिम सिंह का महाशत्रु था। महाराव किशोर सिंह ने मेवाड़ के नाथद्वारा में जाकर धार्मिक जीवन आरम्भ कर दिया। उस समय उस की भावनाओं को देखकर और सुनकर मालूम हुआ कि उसने राजनीतिक अशान्ति से अपने आपको अव बिल्कुल अलग कर लिया है। उसके नेत्रों का भ्रमात्मक आवरण अव हट गया था और उसकी समझ में आ गया था कि लोगों ने मुझे जिस मार्ग पर ले जाने की कोशिश की थी, वह मार्ग सही नहीं था। मैंने ऑखें मूंद कर उनका विश्वास किया था। अब उसकी समझ में आ गया कि जो सन्धि हुई थी, वह सही थी और उसमें जो दो शर्ते बाद में शामिल की गयीं थी, वे सही थीं। महाराव के सामने अब कोई उलझन न रह गयी थी, अपने जीवन के इस परिवर्तन के साथ वह मेवाड़ के नाथद्वारा में पहुँच गया था और धार्मिक जीवन बिताना आरम्भ कर दिया था। उसके जीवन के परिवर्तन के बाद उसके पास उन बातों का उल्लेख करते हुए एक पत्र भेजा गया, जिसके आधार पर वह सम्मानपूर्वक कोटा में आकर राज सिंहासन पर बैठ सकता था। यह पत्र उसके पास भेज दिया गया और उसकी स्वीकृति मिलने पर तुरन्त एक इकरारनामा लिखा गया और उसमें उन सभी बातों का निर्णय किया गया, जिनको लेकर राणा जालिम सिंह और उसके बीच कभी कोई संघर्प पैदा हो सकता था। उस इकरारनामे में महाराव के पद की मर्यादा सम्पूर्ण और सुरक्षित रखी गयी और पूरी शक्ति लगातर उसमें इस बात का निर्णय किया कि जिससे भविष्य में कभी भी विरोध और विद्रोह की सम्भावना न रह गयी थी। महाराव के पूर्वजों में कभी किसी राजा को राज्य का कोई हिस्सा नहीं दिया गया था। परन्तु इस इकरारनामे के अनुसार महाराव किशोर सिंह को कोटा राज्य की आमदनी का वीसवाँ भाग देने का निर्णय किया गया। उदयपुर के राणा के पारिवारिक व्यय के लिये उसके राज्य से जितना मिलता है, महाराव किशोर सिंह को मिलने वाली यह आमदनी उसके बराबर होगी। यह इकरारनामा लिखकर तैयार कर लिया गया और उसमें दोनों पक्षों के सम्मान और अधिकारों का पूर्ण रूप से ध्यान रखा गया। साथ ही इस बात की चेष्टा की गयी कि एक बार दोनों पक्षों में सद्भाव कायम हो जाने के बाद जो फिर से विरोध की आग प्रज्वलित हुई थी, दूसरी बार फिर वैसा न होना चाहिए। इस प्रकार की सभी बातों को सोच-समझ कर इकरारनामे मे उनका उल्लेख करके जब सन्तोपजनक व्यवस्था कर ली गयी तो उसके बाद महाराव किशोर सिंह नाथद्वारा से चलकर कोटा में आया और बड़े समारोह के साथ जिस दिन महाराव को राजसिंहासन पर बिठाना था, उसी दिन एक भीपण पड़यंत्र का जन्म हुआ। एक आदमी लँगड़ी दशा में वहाँ पर आया और उसने अपना नाम विशन सिंह बताकर जाहिर किया कि जालिम सिंह के लड़के माधव सिह की आज्ञा से मुझे लॅगड़ा कर दिया गया है। 323