पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ो का एक बहुत बड़ा ढेर तैयार किया गया और निश्चय किया गया कि शत्रु के आक्रमण करने पर पत्थरों के इन टुकड़ों की मार की जायेगी। राजमहलों से परिवार के सभी लोगों को मरुभूमि के एक दूरवर्ती स्थान पर भेज दिया गया। इसके बाद रावल जैतसी अपने दो लड़कों और पाँच हजार सैनिकों के साथ दुर्ग में रहने लगा। देवराज और हमीर एक सेना को लेकर शत्रु का सामना करने के लिए अपनी राजधानी से निकले। उस समय बादशाह अलाउद्दीन अजमेर की तरफ चला गया और भादो के महीने में अपनी खुरासानी फौज को लेकर उसने जैसलमेर को घेर लिया। जैसलमेर के छप्पन बुर्जो की रक्षा करने के लिए तीन हजार सात सौ शूरवीर तैयार थे और आवश्यकता के लिए दो हजार सैनिक दुर्ग के भीतर थे। खुरासानी फौज के आते ही भाटी लोग सभी प्रकार से तैयार हो गये और के द्वारा घेरा डालते ही भाटी सैनिकों ने जो मार आरम्भ की, उससे सात हजार शत्रु के आदमी मारे गये। मीर महबूब खाँ और अली खाँ नामक दोनों सेनापति अपनी बची हुई फौज के साथ हुए युद्ध के क्षेत्र में मौजूद रहे । शत्रु की फौज दो वर्ष तक जैसलमेर पर घेरा डाले पड़ी रही। इसके बाद उसके सामने खाने-पीने की कठिनाई पैदा होने लगी। क्योकि मन्डोर से जो रसद उनके लिए आती थी, उसे देवराज और हमीर रास्ते में ही लूट लेते थे। दुर्ग में भाटी सैनिकों के सामने खाने-पीने की कठिनाई न थी। इसके लिए उन लोगों ने पहले से ही प्रबन्ध कर लिया था। लेकिन युद्ध की इस अवस्था मे धीरे-धीरे आठ वर्ष बीत गये। इन्हीं दिनों में जैसलमेर के राज जैतसी की मृत्यु हो गयी और उसके मृत शरीर का अग्नि-संस्कार दुर्ग के भीतर ही किया गया। जैसलमेर के इस युद्ध के दिनो में बादशाह के सेनापति नवाव महबूब खाँ और रत्नसी मे मित्रता पैदा हुई। जैतसी की मृत्यु हो चुकी थी। सम्वत् 1350 सन् 1294 ईसवी में जैतसी के पुत्र मूलराज तृतीय का राजतिलक दुर्ग के भीतर हुआ। इस अभिषेक के समय मूलराज का छोटा भाई रत्नसी खोजडा वृक्ष के नीचे सेनापति नवाव महबूब खां के साथ बातें कर रहा था। इस मित्रता के सिलसिले मे रत्नसी प्रायः इसी वृक्ष के नीचे उसके साथ बातें किया करता था। दुर्ग में जो उत्सव हो रहा था, उसके सम्बन्ध मे सेनापति महबूब खाँ ने प्रश्न किया। उत्तर देते हुये रत्नसी ने कहा कि "पिता जी की मृत्यु हो जाने के कारण दुर्ग में बड़े भाई मूलराज का अभिषेक हो रहा है।" इस समय सेनापति महबूब खाँ ने रत्नसी से कहा "इस पेड़ के नीचे मैं आप के साथ प्रायः आपसे बातें किया करता हूँ और युद्ध आरम्भ होने पर हम दोनो अपनी-अपनी सेनाओ में युद्ध के लिए पहुंच जाते हैं। परन्तु इसकी असलियत बादशाह को जाहिर नहीं की गयी और उसे बताया गया है कि मेरे कारण जैसलमेर के दुर्ग पर अभी तक बादशाह का अधिकार नहीं हो सका इसलिए दुर्ग पर तुरन्त अधिकार करने के लिए मुझे आज्ञा मिली है। ऐसी दशा मे कल प्रात:काल अपनी फौज लेकर में दुर्ग पर अधिकार करने आऊँगा।" 28