पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३४३

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मैं गम्भीरता के साथ उसकी तरफ देखता रहा। मैंने उसकी बातों को सुनकर कुछ कहा नहीं। शायद वह मुझसे कुछ सुनना भी नहीं चाहता था। उससे बातें करने के बाद मैं अपने स्थान पर लौट आया। ____18 अक्टूबर-प्रात:काल होते ही हम लोगों ने यात्रा शुरू कर दी। वहाँ से सुमैचा नामक स्थान वारह मील की दूरी पर था। जिस रास्ते से हम लोग चल रहे थे, वह घने वृक्षों से बहुत संकीर्ण हो रहा था। स्थान-स्थान पर वह कहीं टेढ़ा, कही ऊँचा कहीं बहुत नीचा था। रास्ते के दोनों तरफ खेर, कीकर और बबूल के वृक्ष थे। इन्हीं वृक्षों के बीच के मार्ग पर हम चल रहे थे। गोगुन्दा नामक ग्राम से होकर हम लोग शिरनाला नामक ग्राम में पहुंच गये। विशालकाय शिखर को जड़ से जो नदी बह रही थी, गोडा ग्राम वहीं पर वसा हुआ था। नदी का आकार-प्रकार टेढ़ा देखकर हम लोगों ने अनुमान लगाया कि इस विस्तृत उपत्यका का एक ही मार्ग हो सकता है । वह विशाल स्थल दूर तक इस प्रकार फैला हुआ था, जो एक-सा नहीं था और उसका प्रत्येक स्थान एक मील से कम नहीं था। पहाड़ों के नीचे से यह जमीन दूर तक फैली हुई थी। पहाड़ो के ऊपर आमों के वृक्ष थे। शिखर के ऊपर के स्थान देखने में अत्यन्त मनोहर मालूम हो रहे थे। पहाड़ों के इन स्थानों को प्रकृति ने सभी प्रकार प्रिय और आकर्षक बना दिया था। वहाँ पर जो वृक्ष थे, उनमें गूलर, सीताफल और वादाम के वृक्ष अधिक मालूम हो रहे थे। नदी के किनारे की भूमि में कई तरह के वृक्ष दिखाई दे रहे थे। उनमें आम, तेन्दू पीपल और बरगद इत्यादि के बड़े-बड़े वृक्ष दूर तक फैले हुए थे। यहाँ के रमणीक दृश्य देखकर हम लोग प्रसन्न होते रहे। वहाँ के निवासियो ने नदी के जल को पर्वत के ऊपर पहुँचाने की चेष्टा की थी और उसमें उनको सफलता भी मिली है। नदी का जल जो पर्वत पर पहुँचाया जाता है, उससे वहाँ की मिट्टी वाली भूमि में ईख, रूई और दूसरे अनाजों की खेती की जाती है। लोगों का कहना है कि वहाँ पर जो ईख पैदा होती है, वह दूसरे स्थानो की ईख से उत्तम होती है। ईख की खेती से वहाँ के लोगों को अच्छी आमदनी हो जाती है। परन्तु तीन वर्षो से ईख की खेती में एक कीड़ा लग जाने से उनको बहुत हानि पहुँचती है और जो आमदनी उससे हुआ करती थी, उसको बहुत क्षति पहुंची है। सुमैचा ग्राम तीन भागों में विभाजित है और उसके प्रत्येक भाग में लगभग एक सों परिवार रहा करते है, यह ग्राम राणाराज नामक पर्वत के नीचे की भूमि पर बसा हुआ है। मुगलो से पराजित होने पर राणा वहाँ के पहाड़ी रास्ते से भागकर घने जंगलों में चला गया था। उस समय से यह पर्वत राणा राज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस सुमैचा ग्राम में प्रसिद्ध राणा कुम्भा के वशज कुम्भावत लोग रहा करते हैं। हम लोगों के पहुंचने पर कुम्भावत सरदार अपने साथ बहुत से लोगो को लेकर मुझसे मिलने आया। उसने अपने यहाँ की बनी हुई कुकडी मुझे भेंट मे दी। कुकडी यहाँ का एक पहाड़ी शस्त्र है. जो तीन फुट लम्बा होता है। घी के साथ उसने बकरी के बच्चे भी मुझे भेंट मे दिये। मैंने उन राजपूतों और भूमिया लोगों से सम्मान के साथ भेंट की ओर उनसे मिलने की खुशी जाहिर की। उन लोगो के स्वस्थ शरीर और उनकी आकृति देखकर हम सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए। 337