पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३५

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, नवाब महबूब खाँ की इस बात को सुनकर रत्नसी चुपचाप बना रहा। उसके ऊपर उसकी बातों का कोई प्रभाव न पड़ा। कुछ समय के बाद वह उस स्थान से चलकर दुर्ग में पहुँच गया। दूसरे दिन सवेरा होते ही सेनापति महबूब खाँ अपनी शक्तिशाली सेना लेकर रवाना हुआ और उसने दुर्ग पर जोरदार आक्रमण किया। भीपण संग्राम आरम्भ हो गया शत्रु की सेना दुर्ग पर अधिकार करने की पूरी कोशिश कर रही थी और यदुवंशी सेना दुर्ग की रक्षा कर रही थी। इस युद्ध में बादशाह के नौ हजार आदमी मारे गये। नवाव महबूब खाँ वबराकर अपनी बची हुई सेना के साथ युद्ध से भाग गया। इसके बाद उसने बादशाह की एक नयी सेना लेकर जैसलमेर के दुर्ग को फिर से घेर लिया। इसके बाद एक वर्ष और बीत गया। उस दुर्ग में जैसलमेर की जो सेना मौजूद थी, अव उसके सामने खाने-पीने का कष्ट बढ़ने लगा और जव उसके लिए कोई व्यवस्था न हो सकी तो मूलराज ने अपने सामन्तों को बुलाकर कहा- "राजधानी की रक्षा करते हुये हम लोगों ने इतने दिन विता दिये हैं। इन दिनों में खाने-पीने के कष्टों का किसी प्रकार सामना किया गया है। लेकिन अब कठिनाइयाँ बहुत बढ़ गयी हैं। शत्रुओं ने जैसलमेर के सभी रास्तों पर अधिकार कर लिया है और बाहर से खाने-पीने की सामग्री का आ सकना अब असम्भव हो गया है। इस दशा में अब क्या होना चाहिए?" राजा मूलराज के इस प्रश्न को सुनकर सिहर और वीकमसी नामक दो सामन्तों ने कहा-"राजमहलों की सभी राजकुमारियाँ और रानियाँ जौहर व्रत का पालन करें और हम सव लोग युद्ध-भूमि में शत्रुओं से लड़ते हुये अपने प्राणों की वलि दें। इसके सिवा इस समय दूसरा कोई उपाय नहीं हो सकता।" जैसलमेर के दुर्ग में जिस समय राजा मूलराज अपने सामन्तों के साथ इस प्रकार का परामर्श करता था, इसका कुछ भी पता बादशाह की फौज को न था। सेनापति महबूब खाँ और उसके साथियों को मालूम था कि जैसलमेर के दुर्ग में खाने-पीने की जो व्यवस्था है, वह अभी बहुत दिनों तक काम करेगी। इसलिए सेनापति महबूब खॉ स्वयं अधीर हो उठा और निराश होकर वह जैसलमेर से अपनी सेना के साथ चला गया। बादशाह की फौज के चले जाने के बाद रत्नसी ने महबूब खाँ के छोटे भाई को जैसलमेर के दुर्ग में बुलाया और उसका बड़ा सत्कार किया। महबूब खाँ के भाई ने दुर्ग में पहुँचकर वहाँ की जो परिस्थितियाँ देखीं, उससे यह बात छिपी न रही कि भोजन की कमी के कारण यदुवंशी सेना दुर्ग में भयंकर कठिनाइयों का सामना कर रही है। वहाँ की परिस्थिति को समझकर महबूब खाँ का छोटा भाई तुरन्त दुर्ग से चला आया ओर वादशाह की फौज में जाकर उसने दुर्ग की सब हालत बतायी। नवाव महबूब खाँ उस समाचार को सुनकर अपनी फौज के साथ उसी समय जैसलमेर की तरफ रवाना हुआ ओर वड़ी तेजी के साथ उसने फिर दुर्ग को जाकर घेर लिया। यह देखकर मूलराज को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसके बाद ही उसे मालूम हुआ कि सेनापति महबूब खाँ का भाई दुर्ग में आया था और रत्नसी के द्वारा उसको यहाँ की सम्पूर्ण परिस्थिति मालूम 29