पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३५९

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करते हैं और उसमें उन लोगों को रुपये देने पड़ते हैं। इस प्रकार के विवाह के समय वर के सिर पर मोर के वदले पीपल की टहनी बॉध देते हैं। विवाह में सात वार घूमने की उनमें भी प्रथा है। अर्थात् अन्न भरे हुए सात कलश नीचे-ऊपर रखकर वे फेरे डाले जाते हैं। वर और कन्या के वस्त्रों मे गाँठ बाँधकर विवाह करने की प्रणाली माहीर लोगों मे अब तक प्रचलित है और सभी लोग उनके नियमों का पालन करते हैं। __इस प्रकार की प्रथाओं में एक विशेप वात यह है कि जो माहीर लोग मुसलमान हो गये हैं, वे भी विवाह के समय इसी प्रकार के नियमों का पालन करते हैं और उनके विवाह ब्राह्मण पुरोहितो के द्वारा सम्पन्न होते हैं। उनके सामाजिक संस्कारों में मुसलमान होने के वाद कोई अन्तर नहीं आया। माहीर लोगों की यह एक विशेपता है। इस प्रकार की बातों की खोज से मुझे मालूम हुआ है कि विधवा स्त्रियो के विवाह केवल माहीर लोगों मे ही नहीं होते थे, बल्कि अत्यन्त प्राचीन काल में ब्राह्मण और राजपूत भी विधवा स्त्रियो के साथ विवाह किया करते थे। उनके विवाहों में उस समय किसी प्रकार की रुकावट न थी। लेकिन आजकल ब्राह्मणो और राजपूतों में विधवा विवाह का प्रचार नहीं है। ऐसा मालूम होता है कि विधवाओ के विवाह की रुकावट प्राचीन काल मे न थी बल्कि वह वीच में किसी समय पैदा की गयी है। ___ गुहलोत राजपूतों के मेवाड मे राज्य का विस्तार करने के पहले वहाँ पर जो ब्राह्मण रहते थे, उनमें विधवा विवाह की प्रथा प्रचलित थी। इसके बहुत-से प्रमाण पाये जाते हैं। जिन राजपूतों में विधवा विवाह की प्रथा पायी जाती थी, वे इस स्थान के रहने वाले प्राचीन राजपूतों के वंशज थे और इन दिनों में उनको राजस्थान में भूमिया कहा जाता है। पुराने काव्य ग्रन्थों में चिनानी, खारवार, उत्तायन और दया नामक जातियों के जो उल्लेख पाये जाते हैं, उन सब का सम्बन्ध उन्हीं लोगों के साथ था। अरावली पर्वत के बहुत से स्थानों में उन जातियो के मनुष्य अव भी पाये जाते हैं। परन्तु अब उनकी संख्या बहुत कम ह। माहीर लोगों में विवाह का कार्य बहुत आसानी के साथ होता है और उसमें किसी प्रकार की कोई कठिनाई पैदा नहीं होती। उन लोगों मे विवाह-विच्छेद का प्रचलन भी है। यदि स्त्री-पुरुप में कुछ बिगाड़ पैदा हो जाए और ऐसे कारण पैदा हो गये हो, जिनसे वे एक दूसरे के साथ रहना न चाहें तो उनको विवाह-विच्छेद करने का सामाजिक अधिकार है। इसके लिए पति अपने दुपट्टे का कुछ भाग फाडकर स्त्री के हाथ मे दे देता है। उसके बाद उसका सम्बन्ध उसके साथ विच्छेद हो जाता है। जिस स्त्री का इस प्रकार परित्याग होता है, वह स्त्री उस दुपट्टे का टुकडा हाथ मे लेकर और अपने सिर पर जल से भरे हुए दो कलश नीचे-ऊपर रखकर जब किसी मार्ग से इच्छापूर्वक निकलती है। उस समय जो पुरुप उस स्त्री के सिर से जल के भरे हुये कलशो को उतार लेता है, उस पुरुप के साथ उस स्त्री का विवाह हो जाता है। उनमें यह एक साधारण नियम है। विवाह विच्छेद का यह नियम मीणा लोगो के साथ-साथ जाट, गूजर, माली और बहुत-सी दूसरी जातियो मे भी प्रचलित है। माहीर वाडा मे रहने वाली सभी जातियों में विवाह विच्छेद की प्रथा आम तौर से पायी जाती है। 353