पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३८४

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युद्ध का यह समाचार जब पोकरण के सामन्त को मिला तो वह उसमें शामिल होने के लिए तैयार हुआ। परन्तु कुचामन के शिवनाथ सिंह ने उसे आश्वासन दिया और अपने नगर में ही रहने के लिए उसने संदेश भेजा। फिर भी वह युद्ध-स्थल पर पहुँचने के लिए बार-बार चेष्टा करता रहा। वह सोचता रहा कि अपने पच्चीस सैनिकों के साथ मेरा भतीजा इस युद्ध में मारा गया है। सर्वत्र इन मारे जाने वालों की प्रशंसा हो रही है और हिन्दू-मुसलमान दोनों ही उनकी तारीफ करते हैं। निश्चय ही उन लोगों को मोक्ष प्राप्त हुआ। विशनाथ सिंह, बख्तावरसिंह, रूपसिंह और अनार सिंह ने उनकी अंतिम संस्कार किया।* सामन्त सुरतान सिंह के मारे जाने के सम्बन्ध में ऊपर लिखा हुआ पत्र मुझे मिला। अपने सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए राजपूत किस प्रकार बलिदान होते हैं, इसका अनुभव ऊपर लिखे हुये पत्र को पढ़ कर किया जा सकता है। उस युद्ध में सुरतान सिंह अपने सम्मान और स्वाभिमान के कारण ही गया था और उस समय तक युद्ध किया जब तक उसके शरीर में प्राण रहे । आक्रमण करने के लिए जो सेना उसके राजा की तरफ से आयी थी, वह अत्यन्त विशाल और शक्तिशाली थी। सामन्त सुरतान सिंह इस बात को जानता था। लेकिन एक राजपूत की हैसियत से उसके लिए यह असम्भव था कि वह युद्ध न करता और अपने प्राणों की रक्षा करने का उपाय करता। उसी का यह प्रभाव था कि जब तक वह जीवित रहा और युद्ध करता रहा, उसका एक भी आदमी न तो युद्ध से भागा और न किसी ने आत्म- समर्पण किया। जो लोग सुरतान सिंह के मारे जाने के बाद युद्ध से भागे थे, उनका एक महान् उद्देश्य था और वह यह था कि सुरतान सिंह के मारे जाने पर भागकर वे सुरतान सिंह के लड़के की रक्षा करना चाहते थे। इसलिए वे उस युद्ध से भागे थे। अन्तिम शूरवीर और बहादुर आदमी इस पत्र को लिखने वाला था। वह साहसी और बुद्धिमान था। उसने अपने राजा और मारवाड़ की रक्षा के लिए अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति दे दी थी और अपनी स्त्री के उसने समस्त आभूषण बेच डाले थे। इसके बाद भी जब उसे भय मालूम हुआ तो वह अपने प्राणों की रक्षा के लिए वहाँ से भाग गया। इस प्रकार के अनिष्ट का कारण मैं समझता हूँ कि हम लोगों का भ्रम हुआ। 378