पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३९०

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हुआ। उसके सामने भयानक विपदायें दिखायी देने लगीं। उस दशा में उसने आत्महत्या करने की बात सोच डाली। लेकिन उस समय राठौर राजपूतो के गुरुदेव देवनाथ ने उसको रोका और आत्म-हत्या न करने के लिए उसने उसको बहुत-सी बाते समझाई। उसने उसको समझाया कि तुम्हारी कुण्डली मे तुम्हारी आत्म-हत्या का कोई योग नहीं है और कुण्डली से इस बात का पूरा प्रमाण मिलता है कि थोड़े ही दिनों में तुम्हारी विपदाओं का अन्त हो जाएगा और बाद मे तुम्हारी ही विजय होगी। मानसिह को गुरुदेव की इन बातो पर विश्वास हो गया। उसने आत्म-हत्या का विचार छोड़ दिया। गुरुदेव किसी प्रकार मानसिह को सुरक्षित रखना चाहता था और इसके लिए उसके पास जितने उपाय थे, सभी को वह काम में लाना चाहता था। मानसिंह को बचाने में उसका क्या उद्देश्य था, इसका स्पष्टीकरण इसके बाद आने वाली घटनाओं के द्वारा होता है। इस विषय में यह भी मालूम हुआ कि गुरुदेव नाथ जी भीमसिंह को मार डालने के लिए मारण मन्त्र का जाप आरम्भ कर दिया था और अपने इस जाप की सफलता के लिए ही विप का प्रयोग करके भीमसिंह को मार डालने और मानसिंह को उसके पड़यंत्रो से उसने बचाया। उस गुरुदेव के इस कार्य को मानसिंह ने उसकी कृपा के रूप में स्वीकार किया। उसको इस बात का विश्वास हो गया कि गुरुदेव मे बहुत बडी शक्ति है। इसलिए वह सभी प्रकार उनके निकट अनुगृहीत हुआ। गुरुदेव ने अपने पड्यंत्र से भीमसिंह को विप खिलाकर सफलता प्राप्त की थी। उसके बाद मानसिंह उस गुरुदेव का आशीर्वाद लेकर सिंहासन पर बैठा। देवनाथ ने स्वयं उस समय राजा मानसिंह के गले मे जयमाल पहनाई। उसके बाद इसका श्रेय मानसिंह ने गुरुदेव को दिया और उसने सिंहासन पर बैठने के बाद और गुरुदेव के द्वारा जयमाल पहनने के समय हाथ जोडकर उसके उपकार को स्वीकार किया। सिंहासन पर बैठने के बाद राजा मानसिंह ने अपने राज्य की इतनी अधिक भूमि उसके नाम कर दी, जितनी भूमि मारवाड़ के किसी प्रधान सामन्त के अधिकार मे भी न थी। उस भूमि से गुरुदेव देवनाथ को जितना कर वसूल होने लगा, उससे बहुत कम कर राज्य के अधिकार में रह गया। मिले हुए राज्य के इलाकों से देवनाथ को जो आमदनी होने लगी उसका दसवॉ अंश राज्य की आमदनी का रह गया। इससे इस बात का अन्दाज लगाया जा सकता है कि उस गुरुदेव के अधिकार में राज्य की कितनी बड़ी आमदनी राजा मानसिंह के सिंहासन पर बैठने के बाद आ गयी थी। राजा मानसिंह राज्य के सिंहासन पर था लेकिन उसके हृदय और मस्तिष्क पर गुरुदेव का अधिकार था। देवनाथ जो कुछ चाहता था, राज्य मे वही होता था, मानसिंह गुरुदेव के सकेत के बिना राज्य मे कुछ कर न सकता था। इस प्रकार उस गुरुदेव ने राजा मानसिंह को कई वर्षों तक अपने अधिकार मे रखा और राज्य की आमदनी का अधिकांश भाग उसने मन्दिरो और देवस्थानों को बनवाने में खर्च किया। उसने एक-एक करके लगातार चौरासी मन्दिर बनवाये और धर्मशालाओ का निर्माण करवाया। उन सभी धर्मशालाओ में, जो राज्य की 384